पता नही उल्लू का नाम उल्लू किसने रखा होगा,रखा भी तो यह नाम आगे चलकर मूर्खता का प्रतीक कैसे बन गया...लेकिन मुझे तो यह एक बेहद शानदार और खूबसूरत परिंदा लगता है । मेरे घर में अक्सर मुंडेरों पर छत पर या बगीचे में कभी कभी दिख जाया करता है... इसका अन्य परिंदों की तुलना में बड़ा और भारी शरीर, तीखी नुकीली चोंच,रहस्यमयी आँखें मुझे बहुत आकर्षित करती हैं ।
अगर अपने कभी इस जानवर को नज़दीक से देखा हो तो आप खुद इसकी सुंदरता की तारीफ किये बिना नही रह सकेंगे । क़ुदरत के इस नायाब नमूने को उड़ते हुए देखना तो अलग ही अनुभव होता है...यह बिलकुल धीमे और एक शाही से अंदाज़ में उड़ता है और उस वक़्त यह बेहद कम बार ही पंख फड़फड़ाता है ।
लेकिन बदकिस्मती ! अन्धविश्वास के धनी हमारे देश में इस सुंदर जीव को "मनहूस" समझा जाता है और इसकी घर में या आसपास मौजूदगी को कई जगह अशुभ माना जाता है जिसके चलते लोग अक्सर इसे मार भी देते हैं या इसका आशियाना उजाड़ देते हैं ।
विदेशों में तो कई जगह लोग इसे बाक़ायदा अपने घरों में पालते हैं और प्रशिक्षित भी किया जाता है । ठीक उसी तरह जैसे भारत में लोग शिकरे (यानि बाज़) को पालते और प्रशिक्षित करते हैं, लेकिन जैसा की मैंने देखा उसे पालने और ट्रेन करने की जो विधि है वो बड़ी क्रूर और पीड़ादायक होती है।
पहले तो इस पक्षी को पकड़ कर किसी पिंजरे में बन्द कर दिया जाता है और फिर कोई नशीली दवा खिलाकर इसे मूर्छित कर देते हैं,उसके बाद जो होता है उसे पढ़कर आपके रोंगटे खड़े हो जायेंगे ,इसकी दोनों आँखों को पलको से आपस में मिलाकर सुई से बाक़ायदा सिलाई कर दी जाती है, तत्पश्चात पंद्रह बीस दिनों तक हाथ पे एक मोटे चमड़े का दास्ताना पहनकर इसे बांह पर बैठने का अभ्यास कराया जाता है, इस दौरान इसे नशे का हल्का डोज़ लगातार देते रहते हैं जिससे इसकी आक्रामकता कम हो जाये और यह पालतू बन जाये । फिर कुछ वक़्त बाद पलकों की सिलाई भी खोल दी जाती है ।
विलुप्त होता देख इसके संरक्षण के लिए राज्य द्वारा कानून ज़रूर बनाये गए लेकिन कहीं कहीं चोरी छिपे यह क्रूर हरकतें अभी भी देखने को मिल जाती हैं । लखनऊ में मैंने खुद अपनी आँखों से कई बार शिकरे और उल्लू को प्रशिक्षित करते हुए देखा है ।
तब मैं सोचता था बाज़ को यह कितना सालता होगा कि उल्लू कितना खुशनसीब है उसे कुछ जगहों पर मनहूस या अशुभ मानकर लोग छूते नही,
लेकिन शौक़ीन मिजाजों ने अपने शौक़ की पूर्ती के लिए जिस तरह बेदर्दी से इन शानदार और खूबसूरत जानवरों को जो ताबड़तोड़ नुकसान पहुंचाए हैं उसका नतीजा यह है कि आज शिकरा तो विलुप्ति की कगार पर पहुँच गया है और दिखाई ही नही पड़ता,
मुझे याद है की आखिरी बार मैंने बाज़ तब देखा था जब मैं सातवीं कक्षा में पढ़ता था,तब से आजतक यह चिड़िया कहीं स्वछंद विचरण करती नज़र नही आई....आपको याद हो तो बताएं...
हालाँकि ज़्यादा बड़ी वजह इनके विलुप्तिकरण की पर्यावरण से जुडी है (उसके मूल में भी इंसानी करामात हैं), लेकिन इनकी विलुप्ति के सहायक कारणों में से इन्हें पालतू बनाने और इनके शिकार का इंसानी पागलपन भी है ।
अक्सर सोचता हूँ कि अगर जानवरों में भी शुभ अशुभ जैसी कोई मान्यता होती होगी तो निःसंदेह उनके अनुसार इस दुनिया का सबसे मनहूस जानवर इंसान ही ठहरता होगा ।
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