रविवार, 26 अप्रैल 2015

हमारी मौत की झूठी खबर

हमारी मौत की झूठी खबर उड़ाता है
वो रण में टिकता नही है तो भाग जाता है

हमारे सामने पड़ने की उसे नही हिम्मत
जो आ भी जाए तो फ़ौरन नज़र झुकाता है

हमसे दुश्मनी करके सीखी है शराफत उसने
हमें न ज़िल्लत ओ रुसवाई में लुत्फ़ आता है

हुनर जो सीखा था नादाँ ने रसम निभाने का
हमारा तीर हमी पर वो अब चलाता है

वो तकल्लुफ़ी में जो हमने लिया नही बदला
भूल गए हैं हम ये धोखा उसे सुहाता है

यूँ छोटी छोटी सी जंगों के हम नहीं क़ायल
जो सर गिरे न तो फिर मज़ा ना आता है

किस तरह यूँ शराफत से लड़ी जाती जंगें
ये हमसे सीखो हमी को हुनर ये आता है

बगैर वार के गर्दन क़लम हंसी से करी
जो वार कर दें हम तो सैलाब आता है

शर्म से डूब ही मरा था भरी वो महफ़िल में
ये हमने पूछा था अब कौन तुमको भाता है

वार ख़ामोशी का करके किये हैं क़त्ल कई
उसे पता है तभी वो हमें बुलाता है.....

~इमरान~

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