रविवार, 2 अगस्त 2015

फिल्मों में यौन हिंसा

Iफिर वो चाहे फैशन हो या प्रेम संबंध या लड़ने झड़ने के तरीके ऐसे तमाम तथ्य हैं जो फिल्मों में दिखये जाने के बाद हमारे युवा वर्ग के लिए प्रेरणास्त्रोत बनते हैं और वास्तविक जीवन में उनकी झलक अक्सर देखने को मिल जाती है।

लेकिन फिल्मों में दिखाए जाने वाली इन बातों का बालमन (युवामन) पर और भी क्या क्या असर पड़ता है यह एक विचारणीय एवं ज्वलंत प्रश्न है ।

ताज़ा मामला 'बाहुबली' फ़िल्म के एक सिक्वेंस का है जिसमें फ़िल्म का हीरो, फ़िल्म की हीरोइन और योद्धा अवंतिका के संग बार-बार जबरदस्ती करते है, नाचते-गाते हुए उसे छूते है, उसके ऊपरी कपड़े उतारते है और विरोध के बावजूद उसके कपड़ों को बदलता जाता है.

इसके कुछ ही पलों बाद अवंतिका का हीरो पर दिल आ जाता है और दोनों बाँहों में बाँहें डाले सो जाते हैं.

नाच-गाने के साथ किए गए बलात्कार के इस उदाहरण से एक पुरानी रूढ़िवादी पुरुषप्रधान धारणा को बल मिलता है कि औरत को ताक़त से ही जीता जा सकता है.

किक (2014) में हीरो सलमान ख़ान ढेर सारे पुरुष डांसरों के बीच नाचते हुए जैकलीन फर्नांडीज़ की स्कर्ट को अपने दांतों से उठाता है।
आप देख सकते हैं कि बॉलीवुड की नज़र में लड़कियों के संग की जाने वाली ऐसी यौन हिंसा क्यूट और मजेदार है

यहाँ तक कि समझदार लगने वाले इम्तियाज़ अली जैसे निर्देशक की जब वी मेट (2007) और रॉकस्टार (2011) जैसी फ़िल्मों में भी रेप जैसे जघन्य अपराध को लेकर चुटकुले गढ़े गए होते हैं.

ऐसी फ़िल्मों की आलोचना करने पर एक घिसापिटा जवाब ये मिलता है कि फ़िल्मों में तो वही दिखाया जाता है जो भारतीय समाज में होता है.

यह सच है कि फ़िल्में समाज का आइना होती हैं ,लेकिन यह बात उतनी ही सच है जितना की यह तथ्य की हमारा युथ खासकर स्कुल कालेज जाने वाला तबका किसी न किसी फंतासी में जीवन बिताने वाला तबका इन्ही फिल्मों से प्रेरणा भी लेता है और कभी कभी तो वास्तविक जीवन में भी इन्हें अपनाने से नही चूकता।

इस मुद्दे पर लिखने वाले हम वामपंथी लोगों को अक्सर पता चलता है कि ऐसे बहुत से लोग हैं जो आपकी राय से सहमत हैं लेकिन वो ख़ुद को अकेला महसूस करते हैं क्योंकि उनके आसपास कभी भी किसी ने अपनी आवाज फिल्मों में दिखाई जाने वाली यौन हिंसा के विरुद्ध नहीं उठाई.

बाक़ी भारतीय फिल्मों में दिखाए जाने वाले बलत्कार जैसे सीन्स की अगर चर्चा करने बैठ जाएँ तो हमारा पूरा अख़बार भर जायेगा और फिर भी ज़िक्र पूरा न हो सकेगा ।

अंत में बात समाप्त करते हुए अपने पिछले तर्क के साथ कि फ़िल्में समाज का आईना होने के साथ साथ किशोरों/युवाओं का प्रेरणास्त्रोत भी बनतीं हैं हमें इस बात पर की विशेषकर हमारे भारतीय सेक्स कुंठित समाज में बलत्कार जैसे दृश्य दिखाए जाने की वर्तमान प्रासंगिकता और उसके पड़ने वाले दुष्प्रभावों पर भी गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है ।

एक और तथ्य लिखना आवश्यक समझता हूँ जैसा की मैंने आमतौर पर देखा है सड़क बस ट्रेन जैसी जगहों पर आते जाते महिलाओं को परेशान करने वाले मनचलों की खबर जब अख़बारों में हमारे पत्रकार "छेड़छाड़" की कैटेगरी में रखने की शाब्दिक भूल कर बैठते हैं, जो कि वास्तविकता में आगे चलकर महिलाओं की सुरक्षा के विरुद्ध एक ऐतेहासिक भूल साबित होगी ।

छेड़छाड़ तो एक मीठा प्यारा सा शब्द हुआ करता है जहाँ पति/पत्नी , प्रेमी प्रेमिका, भाई बहन, मित्र मित्राणि, नाते रिश्तेदार एक दूसरे से हंसी मज़ाक ठिठोली करते हैं , यह एक प्रकार का आपसी पारिवारिक मनोरंजन है।

वहीं सड़क बस या ट्रेन में आ जा रही महिला को किसी यौन कुंठित व्यक्ति द्वारा अपनी कुंठा से प्रेरित होकर शारीरिक मानसिक रूप से उत्पीड़ित या परेशान करना, यह छेड़छाड़ नही साथी बल्कि विशुद्ध रूप से यौन हिंसा की श्रेणी में आता है।

इस लेख के माध्यम से अपने पत्रकार बन्धुओं का भी ध्यान हमारी इस भयंकर महिला विरोधी मानवीय भूल की ओर आकृष्ट कराना चाहता हूँ

साथ ही समस्त सांस्कृतिक/राजनैतिक/ गैर राजनैतिक संगठनों से भी निवेदन करता हूँ कि वो फिल्मों में से दुष्प्रेरण और अपराध के लिए उकसाने वाले दृश्यों को हटाने संबन्धी मांगे, बौद्धिक चर्चाएं, और सामाजिक माहौल तयार करें ताकि नर्क बनती जा रही इस धरा को आधी आबादी के रहने लायक एक बेहतर स्थान बनाया जा सके ।

3 टिप्‍पणियां:

  1. बाहुबली में जिस सीन का ज़िक्र है, वह किसी भी प्रकार से ज़बरदस्ती या उत्पीड़न नहीं है, वह तो आपसी सहमति से की गई यौन क्रीड़ा है ।भारतीय स्त्रियाँ कभी पश्चिम की भाँति come on, fuck me , जैसे उद्बोधन नहीं करतीं , पुरुषों को ही उन्हें प्रेम प्रदर्शन कर प्रेरित करना पड़ता है । बाहुबली का वह दृश्य कामक्रीड़ा का एक सुन्दर दृश्यांकन है

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  2. बाहुबली में जिस सीन का ज़िक्र है, वह किसी भी प्रकार से ज़बरदस्ती या उत्पीड़न नहीं है, वह तो आपसी सहमति से की गई यौन क्रीड़ा है ।भारतीय स्त्रियाँ कभी पश्चिम की भाँति come on, fuck me , जैसे उद्बोधन नहीं करतीं , पुरुषों को ही उन्हें प्रेम प्रदर्शन कर प्रेरित करना पड़ता है । बाहुबली का वह दृश्य कामक्रीड़ा का एक सुन्दर दृश्यांकन है

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