मंगलवार, 25 अगस्त 2015

क्योंकर के छिपाएं निशानात ए मुहब्बत

क्यों कर के छिपाएं

निशानात ए मुहब्बत,

बीतें हैं बड़े उम्दा

लम्हात ए मुहब्बत,

इश्क़ लम्हा इश्क़ घण्टा

इश्क़ दिन और महीना,

सालों से हैं जारी

सिलसिलात ए मुहब्बत,

कभी दैर पर तो

कभी दीवारों पे हरम की,

हम छोड़ आये हैं

असरआत ए मुहब्बत,

कभी पास है तू

कभी दूर बेहद,

करे तय क्योंकर

मंज़िलात ए मुहब्बत,

तुम बसे हम मे

हम बसे तुम में,

तुम्ही से मिले हमको

जज़्बात ए मुहब्बत,

~इमरान~


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