क्यों कर के छिपाएं
निशानात ए मुहब्बत,
बीतें हैं बड़े उम्दा
लम्हात ए मुहब्बत,
इश्क़ लम्हा इश्क़ घण्टा
इश्क़ दिन और महीना,
सालों से हैं जारी
सिलसिलात ए मुहब्बत,
कभी दैर पर तो
कभी दीवारों पे हरम की,
हम छोड़ आये हैं
असरआत ए मुहब्बत,
कभी पास है तू
कभी दूर बेहद,
करे तय क्योंकर
मंज़िलात ए मुहब्बत,
तुम बसे हम मे
हम बसे तुम में,
तुम्ही से मिले हमको
जज़्बात ए मुहब्बत,
~इमरान~
nice
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