दिल की गहराईयों में कहीं,
गहरी सी बैठी उदासी,
उदासी को समझाता ज़ेहन,
और ज़ेहन से लड़ता दिल,
एक जीत की कशमकश में,
निरंतर नया सृजन करते हुए,
जन्म देते हैं इंकलाबों को,
कागजों पर नीली स्याही से,
और ज़मीन पर लाल रौशनाई बहाते,
तैयार करते हैं कल की इबारत,
कल जिसकी नींव रखी होगी,
इन्साफ के साफ़ धरातल पर,
जहाँ भट्ठियों में इंसान नहीं,
बस पूँजी झोंकी जाएगी,
कारखानों से निकलते गट्ठरों पर,
पहला हक मजदूर का होगा
और आखिरी हक भी
मजदूर का ही होगा...
~इमरान~
यकीनन पहला हक मज़दूर का होगा ।
जवाब देंहटाएंLong live Imran..!
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