रविवार, 30 नवंबर 2014

रिक्शे वाले, लाल सलाम

का भईया रिक्शे वाले,लाल सलाम!
जी भईया?
लाल सलाम का होअत है जानित हौ?
के का?
अरे लाल सलाम जनित हौ की नाय?
हाँ जानित काहे न हैं!!
अच्छा! का होत है बताओ?
ऊ वइसने होत है जय रामजी के जईसे!
केके जईसे?
अरे वही भाय,जय रामजी की,आदाब,सतसिरिकाल की जईसने टैप होअत है.....
बस बस!तब ठीक बा,चला अब......

शुक्रवार, 21 नवंबर 2014

मोमबत्तियां और बल्ब

राजस्थान मेघदूत में प्रकाशित (चित्र संलग्न)


मोमबत्ती और बल्ब की भी एक अजब कहानी है,बड़ा अजीब सा रिश्ता है , इतिहास भरा पड़ा है इनके आपसी रिश्ते की कहानियों से, जी हाँ मोमबत्ती और बल्ब का इतिहास, जब जब मोमबत्तियों की बस्ती में कोई बल्ब आया उसे परेशानियों का सामना करना पड़ा है,लेकिन बल्ब ने इन परेशानियों से हार मान कर रौशनी देना नहीं छोड़ा,ऐसे ही एक बल्ब की क़ुरबानी की कहानी आज आपको सुनाता हूँ ,
बहुत समय पहले की बात है,मोमबत्तियों के एक देश में कहीं से एक बल्ब रहने आया,एक शहर में छोटी सी खोली बना कर रहने लगा, शहर के और आस पास की मोमबत्तियां उसे बड़ी अजीब नज़रों से देखतीं,उसके बारे में तरह तरह की कहानियां बनतीं, जब बल्ब बाहर निकलता तो कुछ आवारा किस्म की मोमबत्तियां उसपे फब्तियां कसतीं,उसे ताने दिए जाते, छोटे छोटे बच्चे और जवान मोमबत्तियां अक्सर बल्ब की तरफ आकर्षित हो जाते थे,उन्हें बल्ब की तेज़ चमक बड़ी अच्छी लगती थी, वो भी अपने वजूद में उस बल्ब की रौशनी पाना चाहते थे ,इस बात से शहर की चालाक सयानी राजनैतिक मोमबत्तियां खतरा महसूस करती थीं, की अगर सारी जवान मोमबत्तियां बल्ब की तरफ आकर्षित होकर उसकी तरह की हो गयीं तो संसार से मोम बत्तियों का प्रभुत्व ख़त्म हो जायेगा,
संसार को अँधेरे में रौशनी देने का उनका गौरवशाली इतिहास किसी बल्ब के क़दमों की गर्द के तले दब कर रह जायेगा,लिहाज़ा मोमबत्तियों के अस्तित्व के लिए बल्ब का खत्म होना बेहद ज़रूरी है, इस आशय को अमली जामा पहनाने के लिए मोमबत्तियों ने एक दिन एक ख़ास जगह पर कुछ ख़ास बुद्धिजीवी मोमबत्तियों की बैठक बुलाई,
उस बैठक मे बस्ती की सभी बड़ी बड़ी मोमबत्तियां शामिल हुई थीं,सभा में व्यापारी संघ की मोमबत्तियां सबसे आगे बैठीं थीं, उनके पीछे बुद्धिजीवी, सामाजिक मोमबत्ती ,डॉक्टर वकील मोमबत्तियां,पत्रकार मोमबत्तियां और धर्मगुरु मोमबत्तियां इत्यादि मौजूद थीं,
कुछ दो चार युवा मोमबत्तियां भी थीं जो युवक मोमबत्ती संघों या संगठनों की नेता मालूम होती थीं, इनका काम होता था बड़ी मोमबत्तियों के कार्यक्रमों में युवा मोमबत्तियों की भीड़ इकट्ठी करना,इस लिहाज़ से यह तत्काल मोमबत्ती सियासत में काफी अहम् स्थान रखते थे, इन्हें सभी बड़ी और "बुज़ुर्ग" मोमबत्तियों का खुला वरदहस्त प्राप्त था,बड़ों के दीगर जरायम में इनका हिस्सा भी तय शुदा होता था... बहरहाल किसी तरह से यह मीटिंग शुरू हुई, एक सबसे बूढी मोमबत्ती को "लोकतान्त्रिक सर्वसम्मति" से महान मोमबत्ती सभा का अध्यक्ष मनोनीत किया गया,
अध्यक्ष की अनुमति से एक एक कर के वक्ताओं ने भाषण देना शुरू किया,
पहला वक्ता बोला -"दोस्तों,हम मोमबत्तियों का एक गौरवशाली इतिहास रहा है, सालों से हमारे पूर्वज इस संसार को रौशनी देते चले आ रहे हैं,आज हमारे बीच कोई अजीब सा बल्ब नाम का प्राणी आ गया है,यह बल्ब किसी पागल सनकी इंसान का इजाद किया हुआ एक हथियार है जो खुद को वैज्ञानिक कहता है और हमारी रूढ़ियों और परम्पराओं को पाखण्ड और दिखावा कहता है, हमारे गौरवशाली इतिहास को दरकिनार करते हुए आज वो हमारे अस्तित्व को ही समाप्त कर देना चाहता है"
इस भाषण की समाप्ति पर खूब तालियाँ बजीं, फिर अध्यक्ष की अनुमति से एक दूसरी बूढी मोमबत्ती ने बोलना शुरू किया, -"प्यारे साथियों ! आप अच्छी तरह से जानते हैं की विदेशी विधर्मी ताक़तें हमेशा से हम मोमबत्तियों के गौरवशाली उज्जवल इतिहास से जलती और कुढती रही हैं, उनसे हमारी तरक्की और खुशहाली बर्दाश्त नहीं होती है, लिहाज़ा उन्ही पश्चिमी देशों ने आज साजिशन हमारे बीच इस बल्ब को भेज दिया है ताकि हमारी नौजवान पीढियां इस बल्ब के चक्कर में आकर अपना वजूद अपना रौशन माज़ी भुला बैठें और इसके पीछे इस जैसे हो जाएँ,आज हम सबको इस साजिश का मुकाबला करने की ज़रुरत है वरना हमारा अस्तित्व समाप्त हो जायेगा और हमारी आने वाली नस्लें मोमबत्ती होकर रह जाएँगी"
हॉल में ज़ोरदार तालियाँ बजीं, सारी मोमबत्तियों ने एक सुर में अपनी लौ फडका कर इस बात का अनुमोदन किया,
इसके बाद कुछेक वक्ताओं ने और अपनी राय रखी, नौजवान संघ के एक छात्रनेता ने खड़े होकर सभी वरिष्ठ मोमबत्तियों को विश्वास दिलाया की युवाओं को बल्ब के प्रभाव में आकर भटकने से रोकना उसकी ज़िम्मेदारी है और वो अपने जिस्म के मोम का आखिरी कतरा तक बहा कर इस कर्तव्य का पालन करेगा,
व्यापारी संघ की एक नेता मोमबत्ती ने कहा की वो बल्ब की सम्भावित सप्लाई रोकने के लिए बाज़ार को नयी और सजीली आकर्षक भड़काऊ मोमबत्तियों से भर देगा ताकि लोग बल्ब की ज़रूरत ही न महसूस करें,
शराब बनाने का काम  देखने वाली एक मोमबत्ती ने कहा की वोह घर में मोमबत्ती रखने वाले लोगों को कम कीमत पर अच्छी शराब देगा और बल्ब के प्रभाव वाले लोगों को महंगी देगा,
पत्रकार और बुद्धिजीवी मोमबत्तियों ने बल्ब के खतरों और साजिश के खिलाफ लम्बे लम्बे लेख,ख़बरें और किताबें लिखने का आश्वासन दिया,
एक लम्बी दाढ़ी और चोगे वाली मोमबत्ती ने कहा की वोह बल्ब के विरुद्ध फतवा जारी करके उसे इस्तेमाल करने वालों को धर्म और बिरादरी से ख़ारिज करवा देगी, नज़दीक बैठी कुछ तिलकधारी , क्रॉसधारक,पगड़ी वाली और वैसी ही तीन चार अजीब अजीब वेशधारी मोमबत्तियों ने भी दाढ़ी चोगे वाली मोमबत्ती के प्रस्ताव का समर्थन किया और खुद भी वैसा ही करने का भरोसा दिलाया,
सभा अपने तर्ज़ पर चल ही रही थी कि इसी बीच एक मुखबिर मोमबत्ती बीच सभा में दौड़ती हांफती आई और उपस्थित लोगों से कहा की बल्ब अब अपनी हद से आगे बढ़ गया है, उसने अपने पड़ोस में रहने वाली चार मोमबत्तियों को भी बल्ब बना डाला है और अब वो चारों उसके साथ मिल कर चौक में बल्ब के साथ मोमबत्ती संस्कृति के खिलाफ भाषण दे रहे हैं
यह खबर सुनकर उपस्थित मोमबत्तियों के समुदाय में आक्रोश की लहर दौड़ गयी, सब एक सुर से मार दो-काट दो की सदायें बुलंद करने लगे,मंच पर बैठी नेता मोमबत्तियों ने जनाक्रोश को भांपते हुए तुरंत अपना सुर "बहिष्कार से संहार" की तरफ मोड़ दिया,
अध्यक्ष का इशारा पाकर एक अत्यंत वरिष्ठ मोमबत्ती ने माइक सम्हालते हुए कहा -"प्यारे भाइयों,अब बात बहुत बढ़ चुकी है,बल्ब ने हमारी सारी आशंकाओं को सही साबित करते हुए अपना असली रंग दिखाना शुरू कर दिया है,यदि अभी के अभी इस बल्ब को सबक नहीं सिखाया गया तो यह हमको और हमारे अस्तित्व को हमारी संस्कृति सहित ज़मीनदोज़ कर डालेगा"
उधर सारी दाढ़ी चोगे तिलक क्रॉस पगड़ी वाली मोमबत्तियां चीख चीख के बुलंद आवाज़ में बल्ब के विरुद्ध भाषण देने लगीं, कुछ गायकों ने वीर रस की कविताएँ गानी प्रारंभ कर दीं...
भीड़ पहले से ही आक्रोश में नारे लगा रही थी,इतने में इसी भीड़ में से कुछ युवा मोमबत्तियों ने तलवारें लहरानी शुरू कर दीं, और तेज़ नारेबाजियों के साथ चौक की तरद दौड़ लगा दी, भीड़ भी उनके साथ हो ली,
चौक पर बल्ब अपने उन चार नए नए बल्ब बने साथियों के साथ मौजूद था और कुछ एक मोमबत्तियों को लेकर बैठा कुछ समझा रहा था-"आप लोग भी इनकी तरह मोमबत्ती से बल्ब बन जाओ, इससे आपकी प्रकाश देने की क्षमता बढ़ेगी,आप अधिक आयु जियोगे और बेहतर जीवन मिलेगा"
इतने में हजारों मोमबत्तियों की हाहाकारी भीड़ ने उन पर हमला कर दिया,भीड़ आती देख श्रोता मोमबत्तियां तेज़ी से गलियों में भाग कर कहीं गायब हो गयीं,चार नई नयी बल्ब बनी एक्स मोमबत्तियों को भीड़ ने वहीँ मौत के घाट उतार दिया, बल्ब को पकड़ कर मुखिया मोमबत्ती के सामने पेश किया गया,मुखिया ने उसे जेल भेजने का आदेश दे दिया , कुछेक नौजवान मोमबत्तियों ने उसे भी वहीँ मार डालना चाह लेकिन मुखिया मोमबत्ती ने "न्यायिक प्रक्रिया" का हवाला देते हुए उसे अदालत के समक्ष पेश करने को कहा,
अदालत में वो दाढ़ी,चोगे,क्रॉस,पगड़ी और तिलक वाली सारी मोमबत्तियां जज की कुर्सी पर बैठीं थीं, एक हफ्ते तक मुक़दमा चला,सरे काजियों ने एक सुर में कहा की हमारे महान मोमबत्ती ग्रंथों के नियमों के मुताबिक बल्ब को मृत्युदंड मिलना चाहिए क्यूंकि उसने ने एक नयी व्यवस्था कायम करने की कोशिश की है जो न केवल देश और धर्म के विरुद्ध है बल्कि मोमबत्तियों के महान इश्वर "मशाल" के खिलाफ विद्रोह भी है,
इसकी सबसे छोटी सजा फांसी ही है,हालाँकि अपराधी के दुस्साहस को देखते हुए यह सज़ा कम है लेकिन हम इससे अधिक सज़ा दे भी नहीं सकते,
बल्ब ने बड़ी अदालत में गुहार लगाईं,लेकिन वहां भी उसकी सज़ा को बरकरार रखा गया...अंत में फैसला यही हुआ की बल्ब को बीच चौराहे पर जनमानस के सामने फांसी दे दी जाएगी....बल्ब यह सुन कर उदास नहीं हुआ बल्कि मोमबत्तियों की मूर्खता पर हँसता रहा...
फिर एक अख़बारों में बड़ी बड़ी हेडलाइंस में खबर छपी-"छह माह की न्यायिक प्रक्रिया के बाद राजद्रोही बल्ब को बीच चौराहे पर फांसी"
सम्पादकीय पन्नों पर बल्ब को मिलने वाली न्यायिक सुविधाओं,बढ़िया वकीलों और जेल में मिलने वाले अच्छे खाने का ज़िक्र करते हुए मोमबत्ती राज्य की दरियादिली और न्यायप्रियता की दिल खोल कर तारीफ की गयी, सालों तक लोग अपने बच्चों को बल्ब के अपराध के किस्से सुनाते रहे,स्कूलों की किताबों में बल्ब को खलनायक लिखा गया, बुद्धिजीवियों/पत्रकारों की कलम बल्ब को राजद्रोही और मुजरिम कहती रहीं....

~इमरान~

सोमवार, 3 नवंबर 2014

पीर की पैदाइश

दिलावर खान की खानदानी गडावर (कब्रिस्तान) पर आये दिन गाँव के जुलाहा/अहीर बिरादरी के लोग अपनी भैंस ,बकरी चरने के लिए छोड़ देते तो कभी खूँटी लगा कर बाँधने भी लगे थे,दिलावर खान ज़मींदार खानदान से थे,ज़मींदारी भले से ख़त्म हो गयी थी लेकिन वो खानदानी रुआब और अकड बहरहाल उनमे बरक़रार थी,
एक बार की बात है किसी बतकही में हुई बहस पर बगल की जुलाहा पट्टी के 25 साला लौंडे जावेद ने दिलावर खान को गरेबान पकड़ कर ऐसा झिंझोड़ा था की सारे अस्थि पंजर गड्ड मड्ड हो गए थे,संख्या में अधिक बिरादरी वाले जावेद का खान साहब कर तो कुछ ना सके लिहाज़ा बड़े बुजुर्गों की मौजूदगी में जावेद को छोटा होने का ताना देकर अदब व लिहाज़ की दुहाई में माफ़ी मंगवा ली थी,
उस दिन के बाद से अपने रुआब और अकड को दिलावर खान अपनी जेब में छुपा कर रखते थे और बहुत कम मौक़ा महल देखकर ही इस्तमाल करते थे,
इसी जुलाहा पट्टी का एक और लड़का रिजवान इलाके की छोटी मोटी नेतागिरी से उठकर एक दिन गाँव का प्रधान बन बैठा था,परले दर्जे के नशेडी रिजवान के ऊपर इलाकाई विधायक का हाथ था,उसकी नज़र खान साहब की गडावर वाली ज़मीन पर थी,रिजवान का घर पास ही था,वो गडावर के सामने वाली ज़मीन अगर उसके हाते में मिल जाती तो अच्छा ख़ासा हाता तैयार हो जाता, एक छुट्टी के दिन मौक़ा जान रिजवान ने ज़मीन कब्जाने की शुरुआत कर ही दी,
धडाधड दिवार उठना शुरू हो गयी,दीवार की लाइन में एक पुरानी पक्की कब्र आती थी, रिजवान ने उसे समतल करवाना शुरू किया ही था कि इतनी देर में दिलावर खान कुछ दे दिला कर और कुछ ऊपर से "एप्रोच" लगवा कर पुलिस बुला ली और काम रुकवा दिया....
उस दिन रिजवान का मूड बहुत उखडा था,विधायक से उसका फोन पर संपर्क नहीं हो पा रहा था,जब तक रिजवान कुछ जुगाड़ पानी करता शाम हो गयी थी,सो मामले को अगले दिन पर टाल वो घर लौट आया,एक तो रात बिना दारु पिए उसे नींद नही आती थी दुसरे कभी कभी वो नशे की गोलियां ले लिया करता था,,
उस रात उसने दिन वाली खिसियाहट मिटाने के लिए दोनों नशे एक साथ किए,यानी गोली और दारु दोनों, शराब के साथ मिलकर नशे की गोली ने कुछ ऐसा असर दिखाया की रिजवान का दिल उसे झेल न सका और उसे एक छोटा हार्ट अटैक आया, घर वाले उसे लेकर अस्पताल भागे जो घर से एक घंटे की दूरी पर था...
रिजवान को यह पहला दिल का दौरा था ,वो बच गया,बात आई गयी हो जाती लेकिन ये छोटी सी घटना दिलावर खान को उसके खानदानी पुरखों की क़ब्रों को समतल होने से बचाने और अपनी गडावर घेरने का उपाय दे गयी,दिलावर खान ने जल्दी से अपने कुछ ज़रखरीद चेलों को भेज उस आधी टूटी कब्र पर एक फूलों की बड़ी सी चादर चढवा दी और आस पास कुछ धुप अगरबत्तियां जलवा दीं,कुछ बूढ़े सफ़ेद दाढ़ी वाले और कुछ "साफ छवि" वाले लोगों से मसलेहत करके दिलावर खान ने पूरे गाँव में ये अफवाह उड़ा दी के यह उसके दादा के किसी नानिहाली रिश्तेदार की कब्र है जो कोई पहुचे हुए सय्यद बाबा थे और अपने आखिरी वक़्त में उसके दादा के पास मिलने आये थे और कुछ दिन के कयाम के बाद यहीं दौरान ए एह्तेकाफ इंतकाल फरमा गए थे....
रिजवान को अल्लाह ने उनकी कब्र की बेहुरमती की सजा दी और उसे दिल का दौर पड़ गया,बस फिर क्या था, अफवाह ने उसी रफ़्तार से आग पकड़ी जैसे आम तौर पर हिन्दुस्तान में पकड़ा करती है और वहां रातों रात "श्रद्धालुओं" की भीड़ लगने लगी.....
कब्र से गाँव वालों की धार्मिक भावनाएं जुड़ जाने और कुछ अपनी बीमारी के चलते रिजवान इस मामले में अब कुछ न कर सका और इसी मजार के बहाने दिलावर खान ने चाँद की अगली छब्बीस तारीख को सय्यद बाबा के पहले सालाना उर्स की घोषणा करते हुए अपनी खानदानी गडावर को सय्यद बाबा के नाम "वक्फ अलल औलाद" करने का फैसला कर दिया और खुद नए नवेले पैदा हुए पीर के ताज़ा बने मज़ार के मुतवल्ली बन बैठे....
इस घटना को घटे आज बीस साल हो गए,हर साल धूम धाम से बाबा का उर्स मनाया जाता है,दिलावर मियां के पोते आज उस मज़ार के मुतवल्ली (प्रशासक) हैं....

~इमरान~