दिलावर खान की खानदानी गडावर (कब्रिस्तान) पर आये दिन गाँव के जुलाहा/अहीर बिरादरी के लोग अपनी भैंस ,बकरी चरने के लिए छोड़ देते तो कभी खूँटी लगा कर बाँधने भी लगे थे,दिलावर खान ज़मींदार खानदान से थे,ज़मींदारी भले से ख़त्म हो गयी थी लेकिन वो खानदानी रुआब और अकड बहरहाल उनमे बरक़रार थी,
एक बार की बात है किसी बतकही में हुई बहस पर बगल की जुलाहा पट्टी के 25 साला लौंडे जावेद ने दिलावर खान को गरेबान पकड़ कर ऐसा झिंझोड़ा था की सारे अस्थि पंजर गड्ड मड्ड हो गए थे,संख्या में अधिक बिरादरी वाले जावेद का खान साहब कर तो कुछ ना सके लिहाज़ा बड़े बुजुर्गों की मौजूदगी में जावेद को छोटा होने का ताना देकर अदब व लिहाज़ की दुहाई में माफ़ी मंगवा ली थी,
उस दिन के बाद से अपने रुआब और अकड को दिलावर खान अपनी जेब में छुपा कर रखते थे और बहुत कम मौक़ा महल देखकर ही इस्तमाल करते थे,
इसी जुलाहा पट्टी का एक और लड़का रिजवान इलाके की छोटी मोटी नेतागिरी से उठकर एक दिन गाँव का प्रधान बन बैठा था,परले दर्जे के नशेडी रिजवान के ऊपर इलाकाई विधायक का हाथ था,उसकी नज़र खान साहब की गडावर वाली ज़मीन पर थी,रिजवान का घर पास ही था,वो गडावर के सामने वाली ज़मीन अगर उसके हाते में मिल जाती तो अच्छा ख़ासा हाता तैयार हो जाता, एक छुट्टी के दिन मौक़ा जान रिजवान ने ज़मीन कब्जाने की शुरुआत कर ही दी,
धडाधड दिवार उठना शुरू हो गयी,दीवार की लाइन में एक पुरानी पक्की कब्र आती थी, रिजवान ने उसे समतल करवाना शुरू किया ही था कि इतनी देर में दिलावर खान कुछ दे दिला कर और कुछ ऊपर से "एप्रोच" लगवा कर पुलिस बुला ली और काम रुकवा दिया....
उस दिन रिजवान का मूड बहुत उखडा था,विधायक से उसका फोन पर संपर्क नहीं हो पा रहा था,जब तक रिजवान कुछ जुगाड़ पानी करता शाम हो गयी थी,सो मामले को अगले दिन पर टाल वो घर लौट आया,एक तो रात बिना दारु पिए उसे नींद नही आती थी दुसरे कभी कभी वो नशे की गोलियां ले लिया करता था,,
उस रात उसने दिन वाली खिसियाहट मिटाने के लिए दोनों नशे एक साथ किए,यानी गोली और दारु दोनों, शराब के साथ मिलकर नशे की गोली ने कुछ ऐसा असर दिखाया की रिजवान का दिल उसे झेल न सका और उसे एक छोटा हार्ट अटैक आया, घर वाले उसे लेकर अस्पताल भागे जो घर से एक घंटे की दूरी पर था...
रिजवान को यह पहला दिल का दौरा था ,वो बच गया,बात आई गयी हो जाती लेकिन ये छोटी सी घटना दिलावर खान को उसके खानदानी पुरखों की क़ब्रों को समतल होने से बचाने और अपनी गडावर घेरने का उपाय दे गयी,दिलावर खान ने जल्दी से अपने कुछ ज़रखरीद चेलों को भेज उस आधी टूटी कब्र पर एक फूलों की बड़ी सी चादर चढवा दी और आस पास कुछ धुप अगरबत्तियां जलवा दीं,कुछ बूढ़े सफ़ेद दाढ़ी वाले और कुछ "साफ छवि" वाले लोगों से मसलेहत करके दिलावर खान ने पूरे गाँव में ये अफवाह उड़ा दी के यह उसके दादा के किसी नानिहाली रिश्तेदार की कब्र है जो कोई पहुचे हुए सय्यद बाबा थे और अपने आखिरी वक़्त में उसके दादा के पास मिलने आये थे और कुछ दिन के कयाम के बाद यहीं दौरान ए एह्तेकाफ इंतकाल फरमा गए थे....
रिजवान को अल्लाह ने उनकी कब्र की बेहुरमती की सजा दी और उसे दिल का दौर पड़ गया,बस फिर क्या था, अफवाह ने उसी रफ़्तार से आग पकड़ी जैसे आम तौर पर हिन्दुस्तान में पकड़ा करती है और वहां रातों रात "श्रद्धालुओं" की भीड़ लगने लगी.....
कब्र से गाँव वालों की धार्मिक भावनाएं जुड़ जाने और कुछ अपनी बीमारी के चलते रिजवान इस मामले में अब कुछ न कर सका और इसी मजार के बहाने दिलावर खान ने चाँद की अगली छब्बीस तारीख को सय्यद बाबा के पहले सालाना उर्स की घोषणा करते हुए अपनी खानदानी गडावर को सय्यद बाबा के नाम "वक्फ अलल औलाद" करने का फैसला कर दिया और खुद नए नवेले पैदा हुए पीर के ताज़ा बने मज़ार के मुतवल्ली बन बैठे....
इस घटना को घटे आज बीस साल हो गए,हर साल धूम धाम से बाबा का उर्स मनाया जाता है,दिलावर मियां के पोते आज उस मज़ार के मुतवल्ली (प्रशासक) हैं....
~इमरान~
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