बुधवार, 25 फ़रवरी 2015

वो लफ्ज़.....


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वो लफ्ज़ जो कभी,

दिल से सुने जाते थे,

वो बातें जो कभी,

ज़हनों में की जाती थीं,

जहाँ तक किसी भी,

मसीहा की,

रसाई ना थी,

तय रास्ते वो भी,

साथ किये जाते थे,

जिधर से पलटने वाले,

सभी आंसू लिए पलटे,

ख़ुशी की तलाश में,

उस जां हम बढ़े जाते थे,

अब....अब न जाने,

क्या बदलाव आया है,

सफ़र ज़िन्दगी का,

किस रुख पे,

हमें लाया है,

लफ्ज़ समझने वाले,

जो लोग मिले थे हमको,

अब वही लोग क्यों,

खामोश नज़र आते है,

दूरियां लगे खुद वो बढ़ाने

जिसकी तन्हाई में,

बस हम ही हम आते हैं,

कोई तूफ़ान था वो,

या कोई सख्त सैलाब,

सबसे पुख्ता जो,

सहारे थे छुटे जाते हैं,

एक क़दम बढ़ता है,

दो पीछे वो हटाता है,

कौन से ख्वाब हैं जो,

उसको यूँ डराते हैं,

लग्ज़िशें बेसबब हैं,

या कोई रम्ज़ है उनमें,

साये माज़ी से,

निकलते हैं चले जाते हैं,

अपने सरमाये बस,

लफ्ज़ थे जो चन्द अपने,

लफ्ज़ वो ही क्यों,

दुबारा ना पढ़े जाते हैं,

अजनबी तब न लगे,

जब वो मिले थे हमसे,

क्यों वही आज,

मेरे गैर हुए जाते हैं,

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