एक शायर.....
कितना तनहा होता है,
बावजूद अलफ़ाज़ के हुजूम के,
बावजूद कहकशां औ गुलशन के,
मौजूदगी होती है,
बहारों की उसके गिर्द,
खिलते फूलों की खुशबु
किया करती है तवाफ़,
कभी महबूब की डोली
तो कभी आशिक़ की सेज़,
कभी रातों के किस्से
तो कभी दिन के अफ़साने,
उसको घेरे रहते हैं
अज़ बला के दीवाने,
बावजूद इस भीड़ के
दिल से शायर के
गर सोच सको तो,
कैसे जीता है वो
लफ़्ज़ों के सहारे जीवन,
चन्द शब्दों के या
किन्हीं किस्सों के सहारे जीवन,
एक शायर का दर्द
समझा न किसी ने क्योंकर,
दर्द आँखों में उतार आया है
यही आज नज़्म बनकर....
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