मंगलवार, 24 फ़रवरी 2015

अमृता प्रीतम के नाम

अमृता प्रीतम के नाम.....

हर एक बोलती,

नज़्म में उसकी,

एक नया ही,

किस्सा हुआ करता थ,

हर एक बात में,

उसकी बातों की,

एक नया रम्ज़,

बसा करता था,

रम्ज़ जिसमें थी,

जन्मों की कहानी मौजूद,

कोई नई सी तो,

कोई थी पुरानी मौजूद,

वो एक अलफ़ाज़ का,

पैकर थी कोई रौशन सा,

नई नज़्मों का वो एक,

चश्मा थी कोई उजला सा,

उसकी आँखों में सदा,

इश्क़ रहा करता था,

कहीं साहिर तो कहीं,

इमरोज़ बसा करता था,

वो वफ़ा की हुआ करती,

थी गज़ब की पाबंद,

जिसने ठुकराया उसे भी,

नहीं छोड़ा उसने,

नाम बेमतलब ही सही,

नाम तो था लेकिन,

लफ्ज़ ए प्रीतम को,

हमेशा ही था ढोया उसने,

इमरोज़ के कनवास तो,

कभी साहिर के अल्फ़ाज़, 

वो चला करती थी कभी,

गुफ्तगू ए गुलज़ार के साथ,

अब मेरे लफ्ज़ में,

आई है वो हवा बनकर,

अमृता दिल में उतर आई है,

इक दुआ बनकर.....

~इमरान~


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