मंगलवार, 9 जून 2015

क़ब्ल तुम्हारे

तुम्हारे आने से पहले इश्क़ पर शायरी कविता ग़ज़ल या नज़्म न लिखी थी कभी....
गुज़री अकतूबर में तुम आयीं और इस अफ़सानानिगार इस किस्सानवीस को शायर बना दिया तुमने....
इस ज़ेहन से इश्क़ पर निकली हर शायरी में बस तुम ही बसती हो सिर्फ तुम ही रहती हो....
उस पर तुर्रा यह की सिवाए तुम्हारे किसी और के लिए ज़ेहन से कलाम निकलता ही नही....लाख कोशिश के बाद भी मेरी शोना...
तुम्हारे जाना की नज़्मों में महज़ तुम ही आती हो और तुम ही आती रहोगी । 
जब जब मेरी क़लम इश्क़ लिखेगी उसका मतलब फ़क़त तुम होगी.....
मेरी नज़्मों की किताब गर कभी आई तो वो तुमको ही समर्पित होगी....उसके कवर पेज पर तुम्हारे उन हसीं क़दमों की तस्वीर होगी जिनको मैंने बारहां चूमा है और सजदे किये हैं ।
इक बेनाम कहानीकार से गुमनाम शायर बना दिया मुझको....जाने तुममे क्या बात , क्या सुकूँ,क्या अम्न है.....
सिर्फ तुम्हारा...~इमरान~

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