मंगलवार, 9 जून 2015

हेलमेट और मेरी आपबीती

लगभग 4 साल पहले की बात है,मैं अपनी बजाज सीटी हंड्रेड मोटरसाइकिल पर लखनऊ से वापस जौनपुर आ रहा था ।
आमतौर पर मैं हेलमेट का प्रयोग नही करता, जौनपुर से लखनऊ जाते वक़्त भी पूरे रास्ते बिना हेलमेट के ही गया था लेकिन वापसी चूँकि शाम की थी और पहुँचते पहुँचते रात हो जानी थी अतः कुछ सोचकर वहीं रास्ते से एक हेलमेट खरीदी और पहन ही ली ।
4 बजे लखनऊ से जौनपुर के लिये निकला और 6 या 6:30 पर सुल्तानपुर रोड तक पहुँच गया था, अब तक हल्का हल्का अँधेरा हो चला था ।
उसी रोड पर एक ढाबे से थोडा आगे काफी गिट्टी बिछी हुई थी और मैं लगभग 70-80 की स्पीड में था, किस्सा मुख़्तसर यह कि मोटरसाइकिल के अगले पहिए के नीचे कमबख्त एक गिट्टी कहीं से आ धमकी और मुझे पता ही नही चला कि कब गाडी मुझे लेकर दायीं तरफ गिर गयी ,कुछ एक दो मिनट में ही बेहोश हो गया था ।
आँख अस्पताल में खुली, दायें कन्धे की कॉलर बोन तीन जगह से टूट चुकी थी,उसकी हड्डी खाल को चीर कर बाहर झाँक रही थी,बाक़ी शरीर पर भी मामूली चोटें आयीं थीं ।
तीन दिन बाद आपरेशन हुआ...हड्डी में ड्रिलिंग करके चार एक्सटर्नल स्पोर्ट लगाये गए जो पूरे एक महीने तक लगे रहे ।
इस घटना के लगभग एक हफ्ते बाद बाद दादा ने मुझे मेरा हेलमेट दिखाया जिसके बींचोबीच एक लम्बा सा लेकिन हल्का क्रैक पड़ा हुआ था।
एक्सीडेंट की खबर सुन अगले दिन ही दुबई से सीधे लखनऊ उतर आये चाचा पास ही खड़े थे,उनके कहे शब्द आज भी याद हैं-
" इसे देख रहे हो बेटा?ये अगर न होती तुम्हारे सर पे....तो जानते हो इसकी जगह कहाँ पर क्रैक आता?"
~इमरान~

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