गुरुवार, 30 जुलाई 2015

निरन्तरशीलता और परिवर्तनशिला

अनुभव अपने आप में एक शोध होता है, अनुभव एक ऐसा कागज़ है जिसपर आपकी गलतियों से साथ साथ उनका निवारण और पश्चाताप भी लिखा रहता है।
लिखने से याद आया,आप अक्सर जज़्बात में किसी ख़ास के लिये लिखना शुरू करते हैं,अपने लफ्ज़ किसी के नाम कर दिया करते हैं ।

आपके लेखों में होने वाले सभी ज़िक्र और तज़किरे किस एक बुत से मानूस हो जाया करते हैं और फिर उनमें निरंतरता शुरू हो जाती है ।

लेकिन इस निरंतरता और परिवर्तनशीलता में एक मामूली सा फर्क होता है, निरंतरता वहीँ अपनी जगह रुकी रहती है जबकि परिवर्तनशीलता का कोई ठौर नही ठिकाना नहीं ।
आज किसी को आपके लफ्ज़ पसंद आते हैं, कल को कोई बेहतर लिखने वाला आ जाता है...
आपकी किसी के लिए लिखने की निरन्तरशीलता तो वहीँ धरी की धरि रह जाती है लेकिन परिवर्तनशीलता निष्ठुरता से आपकी मौलिकता को ठोकर मारके आगे बढ़ जाया करती है... आप धरे लिए बैठे रह जाइये अपनी निरन्तरता ।

कहते हैं परिवर्तन संसार का नियम होता है,जिसे आपने हर हाल स्वीकार करना ही करना होता है.....लेकिन वो इमरान रिज़वी ही क्या जो नियमों से हार जाए या आत्मसमर्पण कर जाए ।
तो भईया...:आपकी इस परिवर्तनशीलता से प्यारी हमको हमारी मौलिकता और निरंतरता है ।

हाँ अगर कभी लगा की आपका कोई वांछित या अवांछित बदलाव हमारे हम दोनों के वास्तविक हितों के लिए ज़रूरी हो चला है फिर देखा जायेगा...तब तक...आप हमें पढ़ें,न पढ़ें...वो आपकी मर्ज़ी..
वैसे भी ऊपर कह चुका हूँ....दुनिया में काफी अच्छे लेखक मौजूद हैं,रुजू कीजिए,खुश रहिए,हम तो न बदलेंगे ।

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