शिक्षण संस्थान का दर्जा दूर की बात ....मेरे ख्याल से जिन मदरसों में विज्ञान कंप्यूटर और गणित नहीं पढ़ाये जाते उन्हें बन्द ही हो जाना चाहिए ....
साल 2015 में आप 1400 साल पहले लिखी गयी किताबें और कहीं काम न आने वाली बेमसरफ ज़बाने (अरबी/उर्दू) पढ़ाकर उन्हें कार्टूनों जैसे लिबास और वेशभूषा देकर अपने बच्चों को आखिर एलियन क्यों बनाना चाहते हैं....
माना की मदरसों में तालीम पाने वाले बच्चे ज़्यादातर ऐसे गरीब वर्गों से आते हैं जहाँ उनके पास दो वक़्त की रोटी बमुश्किल जुट पाती है , फिर ऐसी स्थिति में तो मदरसों में आधुनिक शिक्षा का महत्व और भी ज़्यादा हो जाता है....
ठीक है बच्चों के ज़ेहन में अपना अपने धर्म मज़हब रिलिजन रुपी गलाज़त घुसाये बिना आप भारतीय परिवारों में परवरिश ही अधूरी मानी जाती है , कम से कम साथ में आधुनिक शिक्षा भी दी जायेगी तो उनमे एक नज़रिया तो पैदा होगा....इसपर पेटदर्द क्यों ?
जो काम महाराष्ट्र की सरकार ने किया है वो इस मुल्क के मुसलमानो को बहुत पहले ही कर देना चाहिए था । खुद समूहों में जाकर मदरसों के संचालकों पर दबाव बनाकर उन संस्थाओं में आधुनिक शिक्षा शुरू करवाने को कहना चाहिए था ।
बाक़ी तो जब तक यह पूंजीवादी व्यवस्था मौजूद है,किसी भी हालत में पूरा देश समान रूप से शिक्षित नहीं हो सकता ...... साक्षर भले से हो जाये ।
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