गुज़र रही है कुछ
शबो की मानंद
अकेली तन्हा
और उदास सी
मेरे कमरे की
छतों को तकती
मेज़ पर पड़ी इस
बेजान डायरी में
ज़िंदा हरुफ़ तलाशने की
नाकाम सी कोशिश करती
बीत ही रही है
तुम्हारे सिवा
फ़क़त इस एक
पुरअम्न आसरे पर
कि शायद कल
तुम मेरे साथ रहो
लेकिन ये आज की रात
लेकिन.....
ये आज की रात.....
~इमरान~.
बेहतरीन !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साथी
हटाएं