रविवार, 26 अप्रैल 2015

अवसाद की पैराहन

रातें होती हैं
कई नींद से खाली
कभी सांसो में
होता है नदारद कोई,
मतलब इसका लेकिन
हरगिज़ ये नही होता,
की न आएगी
सुबह उजली नई
अपने हस्बे मामूर
तुम बस,
मेरा इक काम करो
दफन करके
तल्ख यादों को माज़ी की,
वक़्त ए सुबह की
तज़ादमी के खुद में
उतार लिया करो लम्हात
माना होते हैं उनमे
कई शिकवे ओ गिले
कुछ गलतियां भी,
चीनी मिटटी के कप में
किसी गर्म चाय की मानिंद
उलट कर उसको
पिला दिया करो मुझको
वो तल्खियाँ सारी,
अपनी वो सारे
दर्द और तकलीफ,
अपने अवसाद की पैराहन,
लपेट कर मुझमे,
मुझसे खूब तुम
किया करो शिकवे,
मैंने किया है न
सच्चा वादा तुमसे,
कोई तकलीफ कभी तुमको,
न दूंगा सहने कभी तन्हा जाना....

~इमरान~

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