धुआं देता था आग का ही पता
रास्ता लेकिन पानी को न मिला
रास्ते खूब किये तय हमने मगर
कोई मन्ज़िल या हमसफ़र न मिला
शोर होता रहा शब् भर मेरे गिर्द
बात क्या थी ये कुछ पता न चला
फ़िक्रें घेरे रहीं यूँ माज़ी की
मुस्तक़बिल को ही मेरा घर न मिला
टेढ़े रस्तों पे खूब भटका किया
कोई सीधा सा रहगुज़र न मिला
ज़िन्दगी यूँ रोकती रही मुझ को
मौत को खेंचने का गुर न मिला
उनकी आमद के निशां हैं तो यहां पर मौजूद
वो यहां आया था पर उसे मैं न मिला
~इमरान~
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