रविवार, 26 अप्रैल 2015

कालेज से वापस

कॉलेज से वापस
घर आती हुई लड़की
कई आँखों के धेलों में
उतरने सी लगी
उसके बदन की
हर एक हरकत
कई दिलों पा
देती रही दस्तक
नज़रें ज़मीं में गड़ाये
वो तो चलती रही लेकिन
कई चलती हुई निगाहें
रुक सी गयीं
उसके गिर्द हर सूँ
मानो देख रही थीं
उसकी चाल की गति
उसके नितम्बों से लेकर
सीने के उभारों तक
उसके शरीर का
माप ले रही थीं जैसे
यक ब यक उस लड़की को
कई तीर से हुए महसूस
उसका जिस्म छेदते
नुकीले नयन बाण जैसे
तेज़ी से फिर
उसने संभाला अपना
गिरता हुआ दुपट्टा
किस तरह पाठशाला से
घर का रस्ता
तय कर ही डाला
आज फिर उसने
मैदान जीत ही लिया

~इमरान~

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