रविवार, 26 अप्रैल 2015

उसे समझा हमने

उसने कहा था यहीं रुके रहना
तबसे पहलू भी न बदला हमने

जिसने समझा था कोई खेल हमें
क़ाबिल ए इश्क़ उसे न समझा हमने

वफाओं की हुई कभी जो सख्त कमी
दामन अपना कभी न समेटा हमने

उसको रुसवाई से था सख्त परहेज़
नाम उसका कहीं न लिक्खा हमने

खत जो भेजा था साथ तोहफे के
उस खत को भी न सहेजा हमने

दामन ए वक़्त से जो निकला था
एक किस्सा जिसे लिखा हमने

नज़्म आई मेरा तवाफ़ किया
आँख भर कर उसे था देखा हमने

~इमरान~

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