रविवार, 26 अप्रैल 2015

अच्छी तस्वीर अब नही आती

अच्छी तस्वीर अब नही आती
मेरी सूरत संवर नही पाती

बाल कितने भी मैं सही कर लूँ,
ज़ुल्फ़ें रूकती नहीं हैं बिखर जाती

मेरे कपड़े भी सब सिकुड़ से गए
इनसे सिलवट भी अब नही जाती

पाँव में जूतियां तो आती हैं
उमंग क़दमों में पर नही आती

इत्र चाहे लगा लूँ मैं जितने
खुशबू मुझसे तेरी नही जाती

मेरा मफलर गले में रहता है
इससे सर्दी लेकिन नही जाती

घेरे रहती हैं मुझको यूँ फ़िक्रें
शिकन पेशानी से अब नही जाती

करता रहता है दर्द मेरा तवाफ़
याद माज़ी की मिट नही पाती

हंसी तो हो गयी थी तभी गायब
अब तो मुस्कान भी नही आती

~इमरान~

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