बहुत समय पहले की बात है जब जम्बूद्वीप में गरीब नामक जानवर रहा करते थे, इनके रहन सहन का स्तर बेहद गन्दा और घटिया होता था, फ़टे नुचे मैले कुचैले कपड़े पहनने वाले ये लोग निहायत असभ्य और बद्तमीज़ हुआ करते थे, न इन्हें पढ़ना लिखना आता था और ना ही देश दुनिया के नियम क़ायदे ही यह जानते थे ।
इन गरीबों की सबसे बुरी आदत थी हर वक़्त रोते रहना, हर बात पर रोना, यानि अगर आप सुबह सुबह उठकर इनकी शक्ल देख लें तो आपका भी सारा दिन रोते हुए बीत जाये ।
गरीब एक नंबर के मुफ़्खोर होते थे, मुफ़्त का अनाज,मुफ़्त की सब्सिडी, मुफ़्त की दवा यानी हर वो चीज़ जो इंसान के लिय ज़रूरी होती है वो इन गरीबों को मुफ़्त में चाहिए रहती थी ।
सरकार अगर ये चीजें इन्हें उपलब्ध करा देती तो ये और दूसरी अन्य चीजों के लिए रोना शुरू कर देते मसलन रोज़गार,शिक्षा,आवास,यानि ऊँगली थमाओ तो ये सीधा हाथ पकड़ लेते थे ।
अब बताइये, कोई किसी को कितनी मुफ़्त सुविधाएं उपलब्ध करा सकता है, ये तो सरकार की सहृदयता थी कि वो इन्हें कुछ सुविधाएँ दे दिया करती थी, वरना क़ायदे से तो इन्हें एक धेला भी नहीं दिया जाना चाहिए था ।
लेकिन कोई भला किसी की मदद भी कब तक कर सकता है?
धीरे धीरे अब सरकार की भी हिम्मत जवाब दे रही थी, देश के सम्मानित उद्योगपति,बुद्धिजीवी और अधिकारी वर्ग 'अपने धन' को यूँ इस तरह गरीब नामक प्राणी की मुफ्तखोरी में 'ज़ाया' होते देख दुखी हो रहा था, इनके दुखी होने की आंच धीरे धीरे सरकार का गाल भी जलाने लगी,लिहाज़ा 'सिस्टम' को हरकत में आना पड़ा ।
सरकार ने अपने सबसे क़ाबिल अफसरान की एक मीटिंग बुलाई,अधिकारियों को निर्देश दिया गया कि निर्धारित समय के भीतर देश में गरीबी के समस्त कारणों पर अध्यन करके एक संक्षिप्त और स्पष्ट रिपोर्ट सरकार को सौंपी जाये,अधिकारीयों ने कान लगाकर सरकार की बात सुनी और काम पे लग गए,
तय वक़्त पर रिपोर्ट साहेब की टेबल पर थी।
गरीबी के कारणों का समग्र अध्यन करने के बाद सलाहकारों की सहमति से यह निर्णय लिया गया कि उक्त रिपोर्ट में इंगित कारणों के निदान के लिए एक अलग विभाग गठित किया जाये जिसका कार्य केवल गरीबी मिटाने के लिए सरकार को सुझाव देना हो,
विभाग गठित हुआ और काम भी शुरू हो गया ।
जैसा की सरकार का निर्देश था,गरीबी की समस्या जड़ से खत्म होनी चाहिए, अर्थात,गरीबी नामक वृक्ष को काटा नही जाये,बल्कि उसको जड़ से उखाड़ कर फेंक दिया जाये और ज़मीन में मट्ठा डाल दिया जाये ताकि बाद में कोंपलों के रूप में भी गरीबी दोबारा न उग सके।
नवगठित गरीबी मिटाओ विभाग की सरकार के साथ बैठक तय हुई, गोल मेज़ के चहुंओर अफसरान जमा हुए,साहेब भी आ पहुंचे थे,औपचारिक अभिवादन के बाद बैठक शुरू की गयी।
साहेब ने सवाल दागा-"हाँ तो मितरो, अर्र..मेरा मतलब अधिकारी महोदयों,ये गरीबी मुई कैसे मिटेगी भई?"
मुख्य अफसर ने बोलना शुरू किया,
सर! जैसा की आप जानते हैं (समझदार अफसर हर बात कहने से पहले ये कहना नही भूलता,भले से उसको पता हो कि सर ने कभी स्कूल की शक्ल तक नही देखी है) गरीबी के इंगित प्रधान कारणों में से एक था बेरोजगारी, लोगों के पास करने के लिए काम नही है, काम नहीं होगा तो पास पैसे नही होंगे,पास पैसे नही होंगे तो जीवन आभावग्रस्त हो जायेगा,जीवन जब अभावग्रस्त होगा तो चीजों का अकाल हो जायेगा, तब गरीब को मजबूरन खर्चों में कटौती करनी पड़ेगी, और महज़ उन चीजों का ही उपभोग कर पायेगा जो उसे सब्सिडी और मुफ़्त सुविधा के नाम पर सरकार के सहयोग से उपलब्ध हो जाती हैं , मसलन कम दामों पर अनाज,ईंधन वगैरह,इस प्रकार गरीब हमारे देश में किसी सूरत केवल दो वक़्त खाना खा पाता है....
(हालाँकि खाना तो आवारा कुत्ता भी खा लेता है....तो?? इस देश में गरीब और आवारा कुत्ते की हालत में दस अंतर लिखकर मुझे बताइये....मैं लिखना छोड़ दूंगा...जिस तरह आवारा कुत्ता बे घर के कभी इधर तो कभी उधर घूमा करता है उसी तरह गरीब भी कभी यहां तो कभी वहां अपना झोपडा लिए टहलता जाता है,जिस तरह कुत्ते के आगे कसाई बची खुची हड्डियों के टुकड़े फेंक दिया करता है उसी तरह सरकार...अर्रर ये तो मेरा मुद्दा भटक गया...बात यहां गरीबी मिटाने के सरकार के क़दमों के बारे में हो रही थी...)
तो बहरहाल गरीबी मिटाओ विभाग के अफसर ने आगे गरीबी के निदानों पर चर्चा शुरू की,
"इस प्रकार अभावग्रस्त जीवन जीते जीते जब गरीब आदमी बीमार हो जाता है तो उसे दवा की ज़रूरत पड़ती है...वो (मुफ्तखोर कहीं का) दवा लेने सरकारी अस्पताल जा पहुंचता है...वहां से उसे किसी तरह (जूता चप्पल घिसने और सरकारी बाबुओं और डॉक्टर की घुड़कियाँ सुनने के बाद) दवा मिल ही जाती है ।
एक मिनट,,ये गरीबों के बीमार पड़ने की दर क्या होगी बताना ज़रा? साहेब ने बीच में सवाल किया।
सर हमारे अध्यन के मुताबिक लगभग हर गरीब समय समय पर बीमार पड़ता ही रहता है।
अब अभावग्रस्त जीवन होगा तो बीमार पड़ेंगे ही....समिति के एक बुज़ुर्ग सदस्य ने बोलना शुरू किया...प्रधान कारण बेरोज़गारी ही है,जिसकी वजह से.....
साहेब बीच में बोल पड़े एक मिनट सिन्हा साहब आप रुकिये....हाँ तो वर्मा जी, ये गरीब आये दिन बीमार पड़ता रहता है...उसे हमारे हास्पिटल से मुफ़्त दवा मिल जाती है और वो बच जाता है...अगर उसे दवा न मिल तो?
बेचारा गरीब बिना इलाज के तड़प के मर जायेग सर...सिन्हा साहब दोबारा बीच में बोल पड़े ।
ओफ्फो सिन्हा साहब आप दो मिनट शांत नही रह सकते?आप बताइये वर्मा जी,
वर्मा आँखों में चमक लिए बोले....अगर उसे दवा ना मिले फिर तो देश गरीबों की संख्या में भारी गिरावट आ जायेगी सर...
ह्म्म्म.....चलिए ठीक है.. आज की मीटिंग यहीं बर्खास्त की जाती है...कोई निर्णय संभवतः अगले सत्र में शीघ्र होगा ।
मीटिंग की खबर आई गयी हो गयी...किसी को याद भी नही रहा कि ऐसी कोई बैठक भी बैठी थी।
एक हफ्ते बाद अखबार में पहले पन्ने पर खबर छपी,
"उधोगों को दी जाने वाली सब्सिडी में 10% का इज़ाफ़ा,निवेश में बढ़ोतरी की उम्मीद,अर्थशास्त्रियों ने सरकार के क़दम की भूरि भूरि प्रशंसा की,देश में आएगी विकास की बहार"
अख़बार में अंदर ही कहीं सातवें आठवें पृष्ठ पर एक कॉलम की खबर पन्नों के बोझ से दबी अपनी आखिरी सांसे गिन रही थी,वहां लिखा था-
"स्वस्थ्य बजट में कटौती की गई,अस्पतालों को दी जाने वाली दवा सप्लाई पर सीधा असर,सरकारी अस्पतालों में नही मिलेगी मुफ़्त दवा," ।
~इमरान~