मिस्ड कॉल सदस्यता
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ताज़ी खबर यह है कि बीजेपी दुनिया का सबसे बड़ा राजनैतिक दल बन गयी है, कोई भी देशवासी महज़ एक मिस्ड कॉल के माध्यम से पार्टी का सदस्य बन सकता है और पार्टी की गतिविधियों में शामिल हो सकता है,पार्टी का दावा है कि लगभग 8 से 9 करोड़ लोगों ने पार्टी की सदस्यता मिस्ड कॉल के माध्यम से हासिल की,
उधर कांग्रेस के एक प्रवक्ता ने आरोप लगाया कि उनके मोबाइल पर पहले एक नंबर से मिस्ड कॉल आई,जब प्रवक्ता जी ने पलट कर जानना चाहा कि किसकी कॉल है तो उधर से कंप्यूटर महोदय ने एक सुरीली सी महिला की आवाज़ बनाकर नेताजी को बीजेपी सदस्यता की मुबारकबाद दी, एक तो महिला की आवाज़ वो भी सुरीली,वो कांग्रेसी ही क्या जो फिसल न जाये, एक कांग्रेसी भाजपा से या किसी भी विरोधी से चाहे जितनी चिढ क्यों न रखता हो लेकिन सुरीली आवाज़ों पर वो चित्त हो ही जाता है,मेरा ऐसा विचार है कि प्रवक्ता जी उस समय तो मंत्रमुग्ध होकर सुरीली आवाज़ सुनते रहे होंगे लेकिन बाद में छले जाने का अहसास होने पर उन्होंने प्रेस कांफ्रेंस बुला डाली...
कांग्रेस से याद आया, राजनैतिक दलों की सदस्यता की भी बड़ी अजीब अजीब प्रक्रियाएं हुआ करती हैं... एक बार लखनऊ के मेरे एक निकट मित्र जो उम्र में मुझसे काफी बड़े और शहर कांग्रेस के अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के अध्यक्ष भी थे,को पार्टी की ओर से वार्षिक सदस्य बनाने का टारगेट मिला,
उन्हें तक़रीबन दो सौ के लगभग सदस्य बंनाने थे, पूरा कुनबा,आस पड़ोस और सहकर्मी मिलकर भी उनसे हो नही पा रहा था,एक शाम वो मेरे पास भी फॉर्म लेकर आ धमके,
मैंने ज़रा चौंकते हुए उनसे कहा "लेकिन मैं तो साम्यवादी विचारधारा रखता हूँ इसे आप मेरे पास क्यों लाये हैं", जवाब जो मिला वो सन्न कर देने वाला था,नेताजी बोले-'आप समझे नही रिज़वी साहब,आप चाहे जिस विचारधारा से हों,बस मेरा टारगेट पूरा करवा दीजिए उसके बाद सदस्यता पर्ची चाहे आप फाड़ कर भी फेंक देंगे मुझे कोई फर्क नही पड़ता'
मैंने हैरान परेशान देखकर उनकी बात मान ली और चाय पिलाकर किसी तरह उन्हें विदा किया,
अक्सर कॉलेजों विश्वविधालयों के बाहर कैम्प लगाये राजनैतिक दलों के कार्यकर्त्ता दिख जाते, हर आने जाने वाले छात्र छात्रा को आग्रहपुर्वक बुलाकर उनकी "पर्ची काट" कर दी जाती रहती,
इन कैम्पों में सत्ताधारी दल के शिविर के आसपास सबसे ज़्यादा भीड़ रहती है,
उत्तर प्रदेश में तो विशेषकर समाजवादी पार्टी के सदस्यता कैंपो में अच्छी खासी भीड़ हो जाती, लड़के पहले सदस्यता रसीद कटाते हैं और उसके बाद चौड़े होकर कहते "अब चलेंगे खुलकर बिना हेलमेट,देखते हैं कौन स्साला पुलिसवाला...."
हाँ इस मामले में बहनजी का कैडर बड़ा स्ट्रांग रहता है, बहनजी सदस्यता अभियानों पर कोई ख़ास ज़ोर भी नही देतीं, उन्हें मालूम है की उनका वोटर फिक्स है, कार्यकर्त्ता पूरे चुनाव घर से बाहर भी न निकले, प्रत्याशी की जगह बहनजी एक गुम्मा ही क्यों न खड़ा कर दें, "समाज" का वोट तो बहनजी को ही पड़ना ही है,उसे कोई नही हिला सकता,
इक्का दुक्का "संसदीय कमनिस्टिए" भी भगत सिंह का पोस्टर मय लाल लाल झोला के बगल में टांगे और लंबे लंबे क्लिष्ट भाषा वाले पर्चे हाथों में लिए दिख जाते हैं....
एक बार ऐसे ही कुछ "कामरेड" एक कॉलेज के बाहर अपनी पार्टी के बारे में जानकारी देने के उद्देश्य से शिविर लगाये बैठे थे, एक दो छात्र भगत सिंह का पोस्टर देख उत्सुकतावश उनके पास गए, उनसे सदस्यता के बारे में पूछने लगे,
एक वरिष्ठ कामरेड ने उन्हें एक लम्बा सा खर्रा टिकाना शुरू कर दिया जिसमे वर्तमान राजनैतिक दलों के वर्गचरित्र और दुनिया पर आसन्न आर्थिक संकट का सविस्तार तकनीकी वर्णन था.....
पर्चे पर यह भी लिखा था की "भारत में मार्क्सवादी दृष्टिकोण की एकमात्र सही लाइन केवल उनकी पार्टी के पास ही है और उनकी कोई अन्य शाखा नहीं है...संशोधनवादियों से होशियार"
एक छात्र पर्चा लेकर उसको पढ़ने लगा,अभी 2-4 लाइन ही पढ़ी होगी उसने और मुस्कुराते हुए पर्चा वापस लौटा दिया, उसने उन से उसमे लिखा लेख मर्म सहित समझाने को कहा, एक कामरेड ने समझाना शुरू किया लेकिन उनकी भाषा और पर्चे की भाषा में कोई ख़ास अंतर नज़र न आते देख छात्र आगे बढ़ गए, बाकियों ने भी सर खुजाना शुरू कर दिया,
भाषा पर्चे की इतनी क्लिष्ट थी की छात्रों ने अपने पूरे जीवन में इतने खतरनाक शब्द ना पढ़े होंगे, एक छात्र जो ज़रा जल्दी में था और पर्चा लेकर कॉलेज में दाखिल हो गया, उसको पर्चा बड़ा सुंदर लग रहा था, उसपर भगत सिंह की तस्वीर बनी थी,उसके पड़ोस में रहने वाले आरएसएस के एक अंकल उसे अक्सर समझाया करते "सरदार भगत सिंह" एक सच्चे "राष्ट्रवादी" और "माँ भारती के सच्चे लाल थे" भगत सिंह का व्यक्तित्व उसे बड़ा आकर्षित करता,
बस उनके विचार उसे नही मालूम थे उसने सोचा वो उन्ही अंकल से भगत सिंह के विषय में भी पूछ लेगा...
पर्चे पर हंसिए हथौड़े का चिन्ह भी मौजदू था,बस भाषा इतनी तकनीकी किस्म की थी कि उसका तात्पर्य उसके पल्ले नही पड़ रहा था,
छात्र ने अपने एक गुरु की सहायता से उनको समझना चाहा, गुरूजी पर्चा देखकर बोले -"अभी मुझे स्टाफ हॉल में एक बैठक में शामिल होने जाना है,बाद में समझाता हूँ"
छात्र को समझते देर न लगी की गुरूजी की चिकनी टंट से ये शब्द उसी तरह फिसल चुके हैं जैसे उसके सर से स्टैट्स की क्लास का लेक्चर निकलता है...अक्सर कक्षा में भी किसी छात्र के कोई तकनीकी विषय को एकर प्रश्न पूछ लेने पर गुरूजी इसी तरह विचलित हो जाया करते थे और कभी छात्रों को विषय ने ना भटकने और कभी विषय से सम्बंधित होने पर "कल बताऊंगा" कहकर टाल दिया करते थे..
छात्र अब तक चिढ गया था,उसने पर्चा फेंका और आगे बढ़ गया..
थोड़ा आगे जाने पर एक दिवार के खम्भे के ऊपर उसकी नज़र पड़ी, वहां पीएम की खूबसूरत तस्वीर के साथ एक सुन्दर सा पोस्टर लगा था,पोस्टर पर लिखा था, "बीजेपी के सदस्य बनें,सिर्फ एक मिस्ड कॉल दें और जुड़ें सीधे मोदी के साथ"
छात्र ने जेब से मोबाइल निकाला और नंबर डायल करना शुरू कर दिया....
~इमरान~
सुन्दर व्यंग्य
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