पाठ्यक्रम -भारत का इतिहास-कक्षा 8 (सन्2099)
बहुत समय पहले की बात है, इस मुल्क में एक किसान नामक चालाक प्राणी रहा करता थ,ये एक बेहद दुबला पतला सा लेकिन गज़ब का जीवट किस्म का बन्दा हुआ करता था,कोई काम धाम तो इसके पास रहता नहीं था,अतः रात सूरज निकलने के दो घण्टा पहले से अपने अपने खेतों में पहुँच जाया करता था और वहां जाकर पागलों बेवकूफों की तरह हल चलाना और मेढ़ बांधना शुरू कर देता था,
चूँकि किसान को सिंचाई वगैरह के लिए अधिकतर वर्षा पर निर्भर रहना पड़ता था लिहाज़ा कभी कभी बारिश न होने पर फसल कम हो जाती , अक्सर ऐसा भी होता था की बिन मौसम की बरसात के कारण खड़ी फसल भी बर्बाद होने लगती...
इस सबके चलते इसने एक बेहद बुरी आदत पैदा कर थी...बात बात पर ये सरकार बहादुर से क़र्ज़ लिया करता था, सरकार चूँकि बड़ी दयालु,भोली भाली और जनहित के सरोकारों वाली संस्था होती है, वो किसान को बिन ब्याज का क़र्ज़ दे दिया करती थी,
लेकिन चालाक किसान सरकार बहादुर की इस दरियादिली का गलत फायदा उठाता था, वो क़र्ज़ ले तो लेता लेकिन सरकार को वापस नहीं करता था, वापस न करने के हज़ार बहाने तलाश लेता था लेकिन कर्ज़ा लौटाता न था,
कभी वो कहता कि बारिश ना होने के कारण फसल नहीं हुई, तो कभी वो कहने लगता कि असमय बारिश हो जाने से फसल खराब हो गयी....
यानि देखी आपने इसकी चालाकी? बारिश हो तो भी बहाना, ना हो तो भी बहना, खैर सरकार किसान की इन चालबाजियों को बड़ी अच्छी तरह पहचानने लगी थी,
सरकार पहले तो बड़े प्यार से उसके घर बैंक के एजेंट भेजती, फिर नोटिस वगैरह, लेकिन बेगैरत किसान इतना चालाक होता था कि इन सबसे बचने के लिए वो घर से ही गायब हो जाया करता था,
लेकिन आखिरकार जब नौबत आ ही जाती और किसान को ये अहसास हो जाता की अब वो सरकार के चंगुल से बच नही सकेगा तो फिर उसने ऋण चुकाने से बचने का एक और नायाब नुस्खा निकाला, वो नुस्खा था "आत्महत्या" का,
जैसा की आप जानते हैं भारत एक धर्मप्रधान देश हैं,हमारे यहां धर्मग्रंथों में लिखा है की ये शरीर नश्वर है, जिस्म फानी है, मरने के बाद आप अगर हिन्दू हैं तो पुनर्जन्म/स्वर्ग और मुस्लमान हैं तो आखिरकार जन्नत आपको मिलनी ही मिलनी है, लिहाज़ा चालाक किसान अपनी नई योजना के तहत जन्नत और स्वर्ग की लालच में सरकार बहादुर का पैसा हड़प करके बिना चुकाए ही जन्नत के मज़े लूटने आसमान की जानिब चला जाता था....
इसी तरह ये लालची प्रजाति धीरे धीरे सरकार का सारा पैसा क़र्ज़ की शक्ल में लेकर उसे अय्याशियों में उड़ाती और जब चुकाने की बारी आती तो धरती छोड़कर स्वर्ग भाग जाती थी...चूँकि स्वर्ग का एरिया सरकार बहादुर के नियंत्रण से बाहर है अतएव वो इस पलायन पर कुछ न कर सकी....
फिर सरकार ने अपने सलाहकारों की एक बैठक बुलाई, बैठक में उपस्थित "भद्रजनों" ने किसानों की इस धूर्तता से सरकार बहादुर को बचाने का एक नया तरीक़ा ईजाद कर निकाला,
अब सरकार ने किसानों की ज़मीनें अधिग्रहित करना शुरू कर दीं और उसपर बड़े बड़े उधोग लगाने शुर कर दिए, पहले किसान इन ज़मीनों पर अनाज उगाता था,नतीजा ये निकला की किसान तो सब खुदकुशी करके स्वर्ग/जन्नत भाग गए और अब उन के बच्चे सब अपनी ही ज़मीनों पर बनी इन फैक्ट्रियों में मज़दूरी करने लगे... सरकार के इस क़दम की देश के "बुद्धिजीवी" वर्ग ने भूरि भूरि प्रशंसा करते हुए उसे खूब सराहा...
इस प्रकार धीरे धीरे कुछ रोज़गार बदलने और कुछ स्वर्ग पलायन के चलते एक दिन ऐसा आया कि धरती से यह किसान नामक चालाक और धूर्त नस्ल आखिरकार विलुप्त ही हो गयी...और इनके जाने से "सभ्य समाज" ने चैन की सांस ली ।
क्या इसीलिए अब हमको पेड़ पौधों के पत्ते और मांस खाकर गुज़ारा करना पड़ता है गुरूजी?
फैक्ट्री में काम करने वाले एक मज़दूर बच्चे ने सवाल किया ही था कि तभी घण्टा बज गया....कक्षा का समय समाप्त हो चुका था, गुरुजी ने एक बार उस बच्चे को जो दरअसल किसान प्रजाति का बचा हुआ अवशेष् लग था था, गुस्से की निग़ाहों से देखा...सहपाठी ने बेंच के नीचे से उसकी जंघा पर हाथ मारा, बच्चा सहम कर चुप हो गया, गुरूजी रजिस्टर लपेट क्लास के बाहर निकल गए थे ।
~इमरान~
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