रविवार, 29 मार्च 2015

बेमौसम बरसात

मौसम एक बार फिर पलटी सी ले रहा है, तेज़ हवा चल रही है और आंधी जैसे आसार नज़र आ रहे हैं....

कुछ लोग इसमें आशिक़ाना रुमानियत तलाश करेंगे कुछ अपने बिछड़े इश्क़ को याद कर रहे होंगे...किसी के लिए यह उसकी तैयार खड़ी गेंहू की फसल की बर्बादी का पैगाम होगा तो कहीं बालमन धागों में पन्नियाँ बांधे उसे लेकर मैदानों में दौड़ लगा रहा होगा..

प्रकृति का एक ही रंग अलग अलग ज़िन्दगियों के कनवास पर अलग अलग मंज़र उकेरता हैं...
तेज़ हाड़ कंपाती सर्दी अपने आलिशान हवेलियों में आरामकुर्सी पर बैठे अंगीठी के आगे हाथ में रम का पेग और मोटी सी किताब लिए शख्स के लिए कुछ और ही मज़ेदार मआनी रखती है तो वहीं किसी फूटपाथ पर अपने रिक्शे को ही बिछौना बनाये उसी जैसे हड्डी गोश्त वाले इंसान के लिए इसका अलग ही मतलब होता है...

चिलचिलाती गर्मी में लू के थपेड़े सह कर खौलते तारकोल से सड़क बना रहा मज़दूर गर्मी की अलग ही परिभाषा बताता है वहीं अपने तीस बाई चालीस के फुल ऐसी कमरे में लेते डॉक्टर साहब के लिए यह आराम से सोने का वक़्त होता है.....

अभी कुछ दिन पहले भी इसी तरह अचानक तेज़ बारिश शरू हो गयी थी जिसके चलते किसानों को भारी मात्रा में फसल का नुकसान सहना पड़ा था, हालाँकि प्रदेश सरकार ने मुआवज़े और राहत की घोषणा तो ज़रूर की थी लेकिन यह घोषणाऐं ज़मीनी स्तर पर कितनी कारगर साबित होती हैं किसी से छिपा नही है,

बचपन से ही जब कभी अचानक बेमौसम की तेज़ बारिश या आंधी तूफ़ान जैसा मंज़र सामने आता था तो हम बड़े खुश हो जाया करते,फुटबॉल लेकर घर से बाहर निकल मैदान में पहुँच जाना और मौसम के मज़े लूटना बेहद ख़ास शौक़ था...

खैर बचपन के साथ खेल तो छूट ही गए साथ ही छूट गया ये मौसमों के साथ ख़ुशी और गम का रिश्ता भी...

अब तो जहाँ एक तरफ बेमौसम की बरसात ख़ुशी का अहसास दिलाती है तो फ़ौरन ही दूसरी तरफ फौरन किसी किसान को होने वाले भावी नुक्सान और उसके दर्द का अहसास भी करा जाती है...
बारिश में भीगते ये परिंदे मुझे बेघर मज़दूर के भीगते ठिठुरते बच्चों जैसे लगते हैं, इनका कलरव किसी महबूबा का सुरीला गीत ना लगकर किसी बीमार का रुदन प्रतीत होता है....

लिहाज़ा मुझसे कभी इन बेसौमम की बरसातों को लेकर कुछ "रूमानी या अच्छा" नही लिखा जाता...

इन बरसात की बूंदों में महबूब के आंसू तलाशने वालों ने शायद अभी तक क़र्ज़ में डूबे और खुदकुशी की फ़ासी के फदे से लटके किसान की आँखों की खून की बूंदे नहीं देखीं होंगी ऐसा मेरा ख्याल है....और अगर सबकुछ जानने के बाद भी आप ऐसे माहौल में रोमांस तलाश पा रहे है तो माफ़ कीजिएगा साथी...मुझे आपके इंसान होने पर संदेह है...

अपने बच्चों की तरह किसान फसल को पालता है और अचानक से निष्ठुर प्रकृति उसकी आँखों के सामने उसे बर्बाद कर डालती है... अगर वाक़ई कहीं ईश्वर जैसा लेशमात्र भी कुछ है तो बेहद क्रूर है वो...मुझे बड़ा डर लगने लगा है उसके किसी भी प्रकार के अस्तित्व की कल्पना से ही...

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