बुधवार, 4 मार्च 2015

साक़ी मेरे

उसकी आँखों को तुमने देखा नही,

साकी तुम भी नशे में आ जाते,

रख देते कनारे बोतल को,

साकी तुम इस क़दर बहक जाते,

उसकी ज़ुल्फ़ों के पेंच ओ ख़म देखे,

साक़ी तुम भी कहीं उलझ जाते,

तुमने क़दमों पे नज़रें की ही नही

मिस्ल ए मूसा ग़शी तो खा जाते,

उसकी मुस्कानों से नूर साते था,

साकी तुम तूर से उतर आते,

ज़िन्दगी के वरक़ नए खुलते,

साक़ी तुम भी उसे जो पढ़ जाते,

वज़ऊ करते हरम में तुम बेशक,

साक़ी मयखाने में बाअदब आते....

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