सोमवार, 23 मार्च 2015

सफ़र और मंज़िल part II

आसपास मोतिए के फूल महक रहे थे, उसके सामने सुनहरी सेज़ तैयार रखी थी.... सालों से जागती उसकी आँखों में नींद तैरने सी लगी....आँखों के सुर्ख डोरे उभर से गए.... बिस्तर उसकी आँखों के सामने था, उसने खुद को उसपर रख दिया... रखा क्या गिरा दिया था....नरम बिस्तर उसको अनोखा आराम दे रहा था.... ऑंखें अब बंद हो चली थीं.... बन्द आँखों में धीरे धीरे अँधेरा तैरने लगा...जिसे नींद कहते हैं उस नेमत ने उसे यक बा यक सेहराब करना शुरू कर दिया था.... सालों से प्यासे उसके होंठो ने किसी रेगिस्तानी ऊंट की तरह नींद को लबों से पीना शुरू कर दिया...
देखते ही देखते उसकी आँख लग गयी.... सो गया था वो....मगर महज़ उसका वजूद सोया था...उसके अंदर का कोई परिंदा अभी जाग रहा था...अंतर्मन अपने पंख फड़फड़ा रहा था....  उड़ने की तयारी में जैसे कोई जाने को हो,ठीक वैसे ही..... मस्त मन्द सी हवा के झोंके उसे दावत ए परवाज़ दे रहे थे..... वो चल दिया....पंखो को मदमस्त नर्तकी की तरह इठलाता उड़ता दूर गगन के एक नए लोक में प्रवेश कर गया...स्वप्नलोक....एक ऐसी दुनिया जहाँ हक़ीक़त का सामना न कर सकने वाले इंसान कल्पनाओं में जीने का अभ्यास किया करते हैं....जहाँ वास्तविकता से हटकर एक नई ही कायनात बसा करती है.... वहां पहला क़दम रखा उसने.... चारों ओर हसीन सब्ज़े महक रहे थे... एक छोटी सी झील में रंग बिरंगे हंस तैर रहे थे....सामने एक खूबसूरत दरवाज़ा नज़र आया.. उसकी जानिब बढ़ना चाहता था....लेकिन मन में एक झिझक सी थी....उसके पंखों ने एक बारगी उसे रोका सा...लेकिन उसने अनसुनी कर दी.... उस दरवाज़े की खूबसूरती ही ऐसी थी कि वो खुद पर काबू न रख सका... उसके साये ने उसे थामना सा चाहा था...मगर थाम न सका... वो उस दरवाज़े में दाखिल हो ही गया.....बस वही से ख्वाब के मंज़र बदलने से शुरू हो गए... दर के अंदर चारों तरफ सोने और चांदी की नक्काशी थी.... लेकिन वहां से कुछ आगे बढ़ने पर सामने एक जगह पर कोई आग सी भी जल रही थी.... आग के चारों तरफ अजीब किस्म की परेशानियां मौजूद थीं....जिन्होंने उस परिंदे को हर जानिब से घेरना शुरू कर दिया था...कोई तलवार दिखाता था तो कोई भाले की नोंक से डराता था...हसीन ख्वाब अब धीरे धीरे किसी डरावने से मंज़र में तब्दील हो चुका था.... वो उससे बाहर निकलना चाहता था मगर निकल नहीं पा रहा था....कहीं अचानक सामने से अजब अजब शक्लों के दैत्य खड़े हो जाते तो कभी किसी बड़ी सी गुफा से दहाड़ते शेर उसके पीछे लग जाते.... उसने अपनी पूरी ताक़त से उड़ना शुरू कर दिया ..... पीछे आग की लपटें उसके पर जला देना चाहती थीं...उसके पंखों को छू लेने को आतुर उसकी और लपक ही रही थीं कि उसे सामने कहीं दूर एक छोटा सा रौशनदान नज़र आया...अपनी बची खुची क़ूवत समेट कर वो उस रौशनदान की ओर बढ़ चला....तभी अचानक सामने से एक बेहद भयंकर सा शख्स नमूदार हुआ और उसने एक हैंडल घुमाकर रौशनदान को बन्द करना शुरू कर दिया.... वो घबराया और अपने परवाज़ की रफ़्तार को और तेज़ कर दिया .... उस सपनों की दुनिया के भीतर की दुनिया से बस निकला ही चाहता था...रौशनदान से उसका सर बाहर निकला और एकबारगी उसे लगा की उसका आधा शरीर इस बन्द होते दरवाज़े से कट कर भीतर ही रह जायेगा.... बहरहाल वो उस खिड़की से बाहर निकलने में कामयाब हुआ....बाहर निकलकर देखता है की एक अलग ही दुनिया उसके इंतज़ार में सामने खड़ी थी....ये शुरुआत में हसीन लगने वाला ख्वाब पल दर पल भयानक होता जा रहा था.... उसके सामने अब और भी ज़्यादा भयानक मंज़र दरपेश था.... सामने एक आग का दरिया नमूदार हो रहा था.... मौत अपने पंख फैलाये उसके इस्तेकबाल में खड़ी थी.... उसे गले लगा लेना ही चाहती थी कि अचानक पीछे से उसको किसी ने पकड़ कर अपनी तरफ खींच लिया.... उसे अपने परों पर दो हाथ महसूस हुए.... मानो किसी ने उसको ज़ोर से झिंझोड़ा हो..... उसने घबरा कर आँख खोल दी...उसके पंख गायब होकर हाथों में तब्दील हो चुके थे....बाल ओ पर वाले परिंदे से वो दोबारा इक इंसान के पैकर की शक्ल अख्तियार कर चुका था.... ख्वाब हालाँकि टूट गया था लेकिन उसे माथे पर मानो अभी भी उस आग के दरिया की गर्मी की वजह से पसीना मौजूद था..सामने देखा... उसकी हमसफ़र खड़ी थी...... वो मुस्कराया,

"तुम कोई बुरा ख्वाब देख रहे थे...मुझे लगा तुम्हे जगा देना चाहिए...."

"ख्वाब वाक़ई बुरा था,अच्छा किया जो तुमने जगा दिया"

"ख्वाब बुरे ही होते हैं....हमें हक़ीक़त में जीना सीख लेना चाहिए"

मुस्कुरारते हुए साथी ने पूछा...."हम आज कहाँ तक पहुंचे?

"आज हम बाग़ ए हक़ीक़त में जा पहुंचे हैं....यहाँ एक रात क़याम करने और इसकी खुशबुओं को खुद में बसाने के बाद हम अगले पड़ाव पर कूच करेंगे जहाँ फूलों की सेज़ तैयार हमारा इंतज़ार कर रही है"

"तब तक फूल सूख ना जायेंगे?"

"उफ़,तुम कितने सवाल करते हो"

"नही....नही करूंगा....वैसे उस पड़ाव पर कुछ ख़ास है?" उसने शरारत से फिर सवाल दागा....

"कुछ नहीं....बेहद"

अच्छा .....?

इक मुख़्तसर जवाब देकर वो उसका हाथ थामे चलने हो हो दी,जवाब था....

"हाँ.....हमारी इश्क़रात..."

वो मुस्करा कर अपने धड़कते दिल को संभाल उसके पीछे हो लिया......

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