(1)मेरी किस्मत में ग़म अगर इतना था,
दिल भी या रब कई दिये होते...
(2)ज़िन्दगी अपनी इस शक्ल से गुजरी ग़ालिब
हम भी क्या याद करेंगे की खुदा रखते थे
ग़ालिब के सात बच्चे हुए पर कोई भी पंद्रह महीने से ज्यादा जीवित न रहा. उनकी पत्नी की बड़ी बहन को दो बच्चे Kहुए जिनमें से एक ज़ैनुल आब्दीनखाँ को ग़ालिब ने गोद ले लिया था.
वह बहुत अच्छे कवि थे और 'आरिफ' उपनाम रखते थे. ग़ालिब उन्हें बहुत प्यार करते थे और उन्हें 'राहते-रूहे-नातवाँ' (दुर्बल आत्मा की शांति) कहते थे. दुर्भाग्य से वह भी भरी जवानी(36 साल की उम्र) में मर गये. ग़ालिब के दिल पर ऐसी चोट लगी कि जिंदगी में उनका दल फिर कभी न उभरा. इस घटना से व्यथित होकर उन्होंने जो ग़ज़ल लिखी उसके कुछ शेर :
लाजिम था कि देखो मेरा रस्ता कोई दिन और,
तनहा गये क्यों अब रहो तनहा कोई दिन और ,
आये हो कल और आज ही कहते हो कि जाऊँ,
माना कि नहीं आज से अच्छा कोई दिन और,
जाते हुए कहते हो क़यामत को मिलेंगे,
क्या खूब क़यामत का है गोया कोई दिन और