रविवार, 21 सितंबर 2014

हालात ए हाज़िरा-पार्ट 1

रूहानी इलाज करवाइए,चौबीस घंटो में शर्तिया इलाज,नौकरी व्यापर प्रेम वशीकरण से लेकर सौतन से मुक्ति तक,सब इलाज हैं बाबा के पास,बाबा के पास जिनों/परियों को वश में करने की कला भी है, कितने जिन बाबा की ऊँगली के इशारों पर नाचते हैं...दूर दूर से बाबा के पास भक्त आते हैं,हजारों लोगों को फायदा हुआ है
बाबा के मुंह से बात निकलते ही पूरी हो जाती है, बाबा कैंसर,पथरी,नजला खांसी बुखार,अंग प्रत्यारोपण जैसे मसलों पर अपना इल्म इस्तेमाल नहीं करते,
अभी कुछ ही दिनो पहले की बात है एक छोटे लड़का कार की चपेट में आकर अपनी एक टांग गँवा बैठा, बाबा चाहते तो किसी जिन या परी से कहकर उसके एक वैसे ही दूसरी टांग पैदा कर देते,लेकिन नहीं की,
पूरी दुनिया एड्स, कैंसर, इबोला, स्वाइन फ्लू जैसी बीमारियों से जूझ रही है, बाबा लोग इन बीमारियों को नहीं देखते....आखिर मजबूरन उस बच्चे को नकली पैर लगवाना पड़ा,बाबा अगर चाहें तो सब कर सकते हैं लेकिन सब अगर बाबा ही कर देंगे तो इन्सान काहिल न हो जायगा? बाबा को इंसानियत की फ़िक्र सबसे ज्यादा है,
कुछ अरसा पहले मेरे एक परिचित को खतरनाक वाला पीलिया हो गया था, एक झाड फूँक करने वाले बाबा आते और रोज़ झाड फूंक कर के चले जाते,बाबा ने उसको एक गंडा भी बाँध रखा था,रोज़ गंडे की एक गिरह खुलती जाती और गंडा लम्बा होता जाता था,बाबा का कहना था की जैसे जैसे गंडे की लम्बाई बढती जाएगी वैसे वैसे मर्ज़ का जोर कम होता रहेगा,
लेकिन ब्लड टेस्ट की रिपोर्ट कुछ और कहती ,उसका मर्ज़ जोर पकड़ता जा रहा था, मजबूर होके बनारस के एक डॉक्टर के पास जाना पड़ा,
डॉक्टर रिपोर्ट देखते ही आग बबूला हो गया,मज़हब का दुश्मन नास्तिक कहीं का, ये डॉक्टर लोग चाहते ही नहीं की मुल्क में एक रूहानी माहौल बने,बाबा को भला बुरा कहने लगा, मुझे बड़ा गुस्सा आया, आस्था पर चोट लगी, आस्था बड़ी संवेदनशील होती है, जरा में चोटिल हो जाती है , छुई मुई की पत्तियों की तरह,
मर्ज़ का जोर ना होता और दोस्त की जान का सवाल ना होता तो बाबा को बुरा कहने वाले इस मलऊन डॉक्टर की कायदे से ठुकाई करता ताकि वो इज्ज़त करना सीख सके,इज्ज़त करना सिखाने के लिए ठुकाई सबस सशक्त साधन है,
हमारी आस्था कितनी ही अतार्किक क्यों न हो आपको उसकी इज्ज़त ज़रूर करनी होगी, ना की तो आगे आपकी ज़िम्मेदारी,
मार पीट, बहिष्कार उत्पीडन जैसे खौफ अच्छों अच्छों को इज्ज़त करना सिखा देते हैं,
गांव में कई लौंडे हैं जो बाहर पढने के लिए इनिवर्सिटी जाते हैं और वापस आते हैं मन भर का घमंड साथ में लेकर , अपना एक गोल बना लेंगे ,सब इनिवर्सिटी वाले, साथ उठेंगे साथ बैठेंगे,पता नहीं क्या क्या गपियाते रहते हैं,खैर,आप जितना ही छुपा लें लेकिन अन्दर की बातें निकल कर सामने आ ही जाती हैं , ये सब के सब आपस में बैठ कर मज़हब की बुराइयाँ करते हैं,बाबाओं,मौलवी साहबों,पंडितों को बुरा भला कहते हैं, कुफ्रिया कालीमात मुंह से निकालते हैं,नौज्बिल्लाह, अक्सर तो खुदा के वजूद पर ही बहस मुबाहिसा करते सुने गए हैं,बस पुख्ता सबूत का इंतज़ार है, गांव में सबकी बोलती बंद हो जाती है,हुक्का पानी उठने से सब डरते हैं,
जानते हैं एक बार जो गाँव बदर हुआ दोबारा उसको बिरादरी में कोई पूछेगा भी नहीं,राही मासूम रज़ा को आधा गाँव लिखने पर गंगौली से जो निकाला गया था तो दोबारा मियां की हिम्मत ना हुई जो अन्दर घुस सकें,
गली का कुत्ता भी बिरादरी बदर से अच्छा माना जाता है, कुत्ते को लोग पुचकार देते हैं रोटी डाल देते हैं लेकिन बिरादरी बदर को कोई झाकता तक नहीं,
खैर मेरे परिचित का पीलिया कुछ दिन की दवा से ठीक हो गया,
इसी दरम्यान एक सय्यद साहब भी दूर के किसी इलाके से वहां पधारे थे,चचा ने उनसे भी एक तावीज़ बनवा लिया था,सय्यद साहब के जलवे बड़े मशहूर हैं,
सबसे आम किस्सा यह है कि एक लड़की को मिर्गी आती थी, उसका इलाज भी उन्होंने ही किया था,लड़की पास के ही किसी जुलाहे की थी, मर्ज़ के चलते उसकी शादी नहीं हो पा रही थी, कुछ सरफिरे लोग यह भी कहते पाए गए थे की शादी ना हो पाने के चलते वो मरीज़ हो गयी है,
बहरहालजो भी हो,जुलाहा अपनी लड़की को बाबा के पास ले गया था,रोज़ मगरिब के पहले वो लड़की को बाबा के पास छोड़ आता और रात गहराते आ कर उसे वापस ले जाता, शुरू में लड़की ने वहां जाने में आना कानी की, बाप का शक अब यकीन में बदल गया था, ज़रूर ये वही बुरी शय है जो उसकी लड़की को पकडे है और अब बाबा के खौफ से डर गयी है,सोचती होगी कि बाबा उसे जला न दें,वो उसकी लड़की को बाबा के पास जाने से रोक रही है, लड़की छटपटाती,रोती लेकिन कोई न सुनता,धीरे धीरे वो "बुरी शय" कमज़ोर पड़ गयी और साथ ही लड़की का विरोध भी, एक महीने से भी कम वक़्त में लड़की की मिर्गी दूर हो गई, सय्यद साहब ने एक करम और किया,
"पैंतीस की हो रही है तुम्हारी बेटी, कौन शादी करेगा इससे, मैं निकाह पढवाए लेता हूँ"
जुलाहे की आंख में ख़ुशी के आंसू आ गए, इतना ऊंचा रिश्ता उसे कहाँ मिलता,सय्यद साहब की पहली बीवी हयात थीं,दोनों बीवियां रहेंगी,पहली बेगम तो ऊंची ज़ात की बीबी हैं, साथ रहना मुमकिन न होगा, उसकी बेटी को अलग खिलवत का इंतज़ाम हो जायेगा,कम से कम उसकी बाकी ज़िन्दगी तो ख़ुशी में बीतेगी,उसने बेटी के भविष्य की सारी संभावनाएं चट पट तय कर डाली,
बाबा का इतना बड़ा करम हुआ था उसपर,
एक तो लड़की की "बीमारी" ठीक हो गयी दूसरा बेटी का "बोझ" भी उतर गया,एक हिंदुस्तानी बाप को भला और क्या चाहिए?
चलिए ये कहानी तो ख़त्म हुई....आगे फिर कभी

~इमरान~

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