रविवार, 7 सितंबर 2014

और मुस्कुरा दी माँ....

निराला उत्तराखंड में प्रकाशित (चित्र संलग्न)


शहर के एक किनारे पर बनी झुग्गीयों वाली बस्ती में वो अधेड़ औरत अपनी बेटी के साथ रहा करती थी, गरीबी के कारण लड़की की पढाई छुट चुकी थी और वो अपनी माँ से सीखी हुई सिलाई कढाई के हुनर से कुछ पैसे कमा लिया करती थी , माँ भी सिलाई का काम करती थी , बस्ती की ही औरतें अपने और अपने बच्चों के कपडे उससे सिलवाया करती थीं ... इसी पर जैसे तैसे माँ बेटी का गुज़र हो जाया करता था, अक्सर सिलाई का काम ना आने या कम आने पर उसकी माँ को आस पास के मकानों पर साफ़ सफाई या बर्तन झाड़ू का काम भी करना पड़ता था... ज़िन्दगी इसी ढर्रे पर बीत रही थी कि अचानक एक दिन डाकिया राजेश की वो चिट्ठी लेकर आया, राजेश,उसका सगा भतीजा था,जो पढ़ाई ख़त्म करने के बाद नौकरी की तलाश में दिल्ली चला गया था, डाकिया को विदा करके चिट्ठी उसने कुसुम को दे दी, पढ़ना तो बिटिया,क्या लिखा है राजेश ने,
कुसुम ने भी उत्सुकतापूर्ण अंदाज़ से चिट्ठी हाथ में ले ली और उसे खोलने लगी,
आज अचानक राजेश भैय्या को हम लोगों की याद कैसे आ गयी माँ?
अरे तू पहले पढ़ तो,उसने लिखा क्या है....शीला ने कहा...

बुआ ,
सादर चरणस्पर्श,
आपके पुराने वाले पते पर कई ख़त लिखे लेकिन कोई जवाब ना आया, बाद में पता चला की आपने वो मकान छोड़ दिया है, बड़ी मुश्किल से आपका नया पता मालूम किया,3 साल हुए, दिल्ली में मेरी नौकरी एक बैंक में लग गयी है,मेरी शादी भी हो गयी है, हालात कुछ ऐसे बने की आप लोगों को शादी में ना बुला सका,उस पर विस्तार से फिर कभी, फिलहाल तो आप फ़ौरन यहाँ दिल्ली चली आइये,मैंने अपना मकान भी खरीद लिया है,जिसमे हम पति पत्नी अकेले ही रहते हैं,माँ बाबा के जाने के बाद हमारा इस संसार में आपके सिवा है ही कौन,कुसुम कैसी है?अब तो बड़ी हो गयी होगी,मैं यहीं स्कूल में उसका एडमिशन करा देता हूँ,आप जल्द आइये,पीछे मैं अपना पता दे रहा हूँ,

प्रतीक्षा में,
राजेश,आपकी बहु और आपका पोता

"माँ, तुम्हे क्या लगता है,अचानक इस तरह राजेश भैया हम लोगों पर क्यों मेहरबान हो गए?

तू बस इसी तरह शक किया कर, अरे बेचारा अकेला है,वहां उसका है ही कौन, मुझे अपने पोते को भी तो देखना है.....हम परसों ही दिल्ली चलेंगे...शीला ने फैसला सुनाया...

राजेश ने टिकट के लिए पैसे भी भेजे थे, दोनों माँ बेटी दिल्ली वाली ट्रेन में बैठ गए, स्टेशन पर राजेश उन्हें लेने आया था...
कितना बदल गया था वो, कभी उसकी गोद में खिलखिलाने वाला नन्हा राजेश... शीला ने अपने भतीजे को ख़ुशी से गले लगा लिया, दोनों घर पहुंचे,
राजेश की पत्नी सुजाता ने उनका स्वागत किया, बुआ के पाँव छुए और कुसुम को गले से लगा लिया,
राकेश ने अपनी बुआ और कुसुम को मकान में ही एक कमरा दे दिया था, जहाँ दोनों माँ बेटी सोया करते थे, शीला किचन का सारा काम देखने लगी थी, कुसुम राजेश और सुजाता के तीन माह के बच्चे को सम्हाल लेती,
राजेश ने कुसुम का एडमिशन एक नजदीक के सरकारी स्कूल में करवा दिया था,
दोनों माँ बेटी बहुत खुश थे, सुजाता के पुराने कपडे कुसुम को बिलकुल फिट आते थे, थोडा सा सिलाई के बाद शीला भी उन्हें पहन सकती थी, तीज त्यौहार पर उनके किए नए कपडे भी बनवा दिए जाते थे,

अक्सर राजेश के दफ्तर के लोग या सुजाता की सहेलियां उनके घर आया करते थे, लेकिन राजेश और सुजाता कभी उन्हें अपने मेहमानों से ना मिलवाते,एक दो बार कुसुम के जिज्ञासा प्रकट करने पर शीला ने उसे झिड़क दिया.....तुझे इससे क्या...वो सब उसके ऑफिस और सोसाइटी के लोग हैं..हमे उनसे क्या मिलना...
एक दिन कुसुम टीवी देखने बैठी, सुजाता ने उसके हाथ से रिमोट छीन लिया "सुनाई नहीं देता तुझे,मुन्ना कब से रो रहा है"
कुसुम सहम गयी,इस व्यव्हार की अपेक्षा उसने भाभी से कभी ना की थी... उसकी आंख में आंसू अ गए,
माँ से शिकायत करने पर उल्टा डांट सुनने को मिली,
कुसुम कि समझ में कुछ ना आता, उसे नहीं मालूम था की टीवि देख कर उसने कौन सी गलती की थी, मुन्ना तो सारा दिन रोता रहता है, फिर उसका क्या कसूर था, उसने थोड़े रुलाया था मुन्ना को.... माँ हमेशा मुझी को डांट देती है, माँ उससे हमेशा कहती, तू अभी बच्ची है...नहीं समझेगी...
क्यों नहीं समझेगी ? वो अब क्लास 8rth में पहुच गयी है,उसे मैथ समझ में आती है, इंग्लिश भी समझ आती है, बस नहीं समझ आती तो माँ की बात...वो क्यों हमेशा राजेश भैया और सुजाता भाभी के दुर्व्यवहार को हंस के टाल जाती है, वो तो राजेश भैया से बड़ी है, राजेश भैया तो क्या वो तो अनिल मामा,(राजेश के पिता) से भी बड़ी है, क्या राजेश भिया अपने स्वर्गीय पिता से भी ऐसे ही बात करते ,सुजाता भाभी क्या उनसे भी ऐसा सुलूक करतीं और राजेश भैया खामोश रहते?उसे कोई जवाब ना मिलता....
दिन यु ही बीत रहे थे,एक दिन अक्सर की तरह राजेश ने घर पर पार्टी दी थी, राजेश के कुछ  दोस्त संग अपने परिवार के पार्टी में शरीक होने आए थे , सभी दोस्त हॉल में ही थे,पार्टी अपने चरम पर थी दोस्तों में हंसी मजाक हो रहा था, शीला अपने कमरे से उठी और किचन की तरफ जाने लगी,कुसुम उसके पीछे ही थी,...शायद दोनों अपना खाना लेने आये थे, किचन से लौटते रास्ते में ही उनके कानो में एक आवाज़ पड़ी ,
"क्यों राजेश , ये लेडीज़ कौन है?
राजेश के किसी दोस्त ने उससे पूछा था,
"कौन वोह?मेड्स है यार"
"ओके ओके, चल एक पेग और बना जल्दी....
अचनाक शीला के हाथ से खाने की प्लेट नीचे गिरी,
सुजाता ने आवाज़ लगाई ,
"अरे क्या हुआ.?"
कुसुम जो सारा माजरा देख रही थी फ़ौरन झुकी और ज़मीन पर गिरे बर्तन समेटते हुए वहीँ से जवाब में बोली....
"कुछ नहीं मेमसाब,प्लेट गिर गयी थी"
"मेमसाब"
राजेश के कानों में कुसुम का यह शब्द तीर की तरह चुभा, और उसका सारा नशा हिरन हो गया ....
कुसुम को एक ही पल में माँ की वो बात समझ आ गयी थी जिसके ना समझने पर वो हमेशा अपनी समझ पर अफ़सोस करती रहती थी....शीला उसकी माँ,अपनी बेटी की समझदारी पर मुस्कुरा दी....

~इमरान~ 

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