शनिवार, 23 मई 2015

इबादत ए इश्क़

हमने कहा इश्क़ करें
वो बोली
हुआ जाया चाहता है
वक़्त ए इबादत जाना
देखो देता है मुसलसल
ये मुअज्ज़िन भी अज़ाँ
फिर कहा मैंने
हमारा इश्क़ भी तो
है इक इबादत है मेरी जां.....
इबादत जिसमे कि
इन्सां के वजूद से
मिल जाता है
इक वजूद ए इन्सां,
इबादत जिसमे
दो ज़ेहन
हो जाया करते हैं
मुसलसल यकजां
और इंसान के वजूद से 
मिल जाये कोई
दूसरा इन्सां
गर इससे बेहतर
इबादत हो कोई
तो बता देवे हमे
उम्मत ए मुस्लिमां

~इमरान~

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