राजस्थान मेघदूत में प्रकाशित (चित्र संलग्न)
गर तुम खुदा थे ,
तो रोक लेते पेशावर में अपने बन्दों को,
बहाने से नन्हे बच्चों का खून,
खून जो उनके माँ बाप का था,
उनकी रगों में दौड़ता,
उन्हें फर्श पर बहा के,
क़त्ल कर दिया उनका भी,
साथ बच्चों के माँ बाप ने,
दफन कर दिया दिल अपना भी,
तुम अगर खुदा थे,
तो न लूटने देते किसी दामिनी को,
सर ए बाजार न नीलाम होने देते,
चौरासी के मज़लूमों को,
अगर तुम थे वजूद में मौजूद,
रोकते गुजरात में दरिंदों को,
बड़ी लड़ाइयों में पीसने वाले मासूम
बच जाते मरने से,
लेते ही तेरा नाम,
आ जाता कोई फरिश्ता आसमान से,
और रोक लेता तेरे भक्तों और बन्दों को,
क़त्ल करने से उन मासूमों का,
जिन्होंने तड़पते हुए,
आग में जलने से पहले,
हज़ारों बार रो रो कर,
ज़ार ओ क़तार आंसू बहाये थे,
तुझे पुकारा था,
तुझे बुलाया था,
जो नही रोक तूने,
तू बराबर गुनाह में शामिल,
जो न रोक सका तो फिर,
किस बात का खुदा बनता है?
सच तो यह है,
कि तेरा कोई वजूद नही,
काश कि वो जानते होते,
कि तू तो मर चूका है,
और तेरा जिस्म कहीं
दूर पड़ा किसी सहारा में,
सड़ता हुआ बदबू में सना
पड़ा हुआ है बस,
उसे दफनाने नही देते,
वो कि जिनकी रोटियां,
आती हैं सपने दिखा कर,
तेरे जागने के सपने,
जो कभी पूरे नहीं होंगे,
क्योंकि तू तो कभी,
पैदा ही नही हुआ ,
तुझे तो बस ज़ेहनो में बसाया गया,
लोगों को डराने के लिए,
उन्हें डरा कर के,
भट्टी में खपाने के लिए,
कि वो बस खौफ ए खुदा में,
डरे सहमे से रहकर,
बेचते रहें अपना जिस्म,
पिलाते रहें अपना लहू,
और लहू पर बनते रहें,
महल तेरे क़रीबी बन्दों के,
मीनार तेरे वलियों की मज़ारों के,
बुतक़दे तेरे सनमखानों के,
और उन बुतकदों में पिसती,
कभी कोई अहिल्या,
तो कभी कोई मरियम,
कभी कोई छोटी बच्ची,
और कभी कोई मलाला,
तो कभी पेशावर के नन्हे तलबा,
और चलता रहे कारोबार,
तेरे क़रीबी बन्दों का.....
~इमरान~
0 टिप्पणियाँ:
एक टिप्पणी भेजें