जब मेरा आँगन महका था
बारिश की पहली बूंदों से,
तुमने आने में देर करी
वो मेरा आँगन सूख गया
जब सारी बगिया महकी थी,
गुलशन की नन्ही कलियों से,
तुमने आने में देर करी,
सुनसान गुलिस्तां हो ही गया,
कल सहरा में मिलना था हमें,
ख्वाबों को सच करना था हमें,
तुमने आने में देर करी,
सब ख्वाब का सेहरा टूट गया,
उस दुनिया में कितनी झिलमिल थी,
जिस जग में हमने रहना था,
तुमने आने में देर करी,
वां हश्र बपा एक हो सा गया,
जिस सेज़ पे हमने सोना था,
सपनो को सच्चा करना था,
तुमने आने में देर करी,
उस सेज़ का बेला सूख गया,
चाहत के रम्ज़ समेटे थी,
ऑंखें मेरी कुछ भीगी थीं,
तुमने आने में देर करी
आँखों का पानी बह सा गया,
दुनिया की रीत बदलनी थी,
किताबें नई कुछ लिखनी थीं,
तुमने आने में देर करी,
किताबों का किस्सा भूल गया,
जब वक़्त के आगे बढ़ना था,
संग साथ हमारे चलना था,
तुमने आने में देर करी,
तो पाँव का छाला फूट गया,
जिस नगरी में हम रहते थे
वो पास तुम्हारे थी बेहद,
तुमने आने में देर करी,
और फासला फिर बढ़ता गया,
~इमरान~