शनिवार, 28 फ़रवरी 2015

तुमने आने में देर करी

जब मेरा आँगन महका था

बारिश की पहली बूंदों से,

तुमने आने में देर करी

वो मेरा आँगन सूख गया

जब सारी बगिया महकी थी,

गुलशन की नन्ही कलियों से,

तुमने आने में देर करी,

सुनसान गुलिस्तां हो ही गया,

कल सहरा में मिलना था हमें,

ख्वाबों को सच करना था हमें,

तुमने आने में देर करी,

सब ख्वाब का सेहरा टूट गया,

उस दुनिया में कितनी झिलमिल थी,

जिस जग में हमने रहना था,

तुमने आने में देर करी,

वां हश्र बपा एक हो सा गया,

जिस सेज़ पे हमने सोना था,

सपनो को सच्चा करना था,

तुमने आने में देर करी,

उस सेज़ का बेला सूख गया,

चाहत के रम्ज़ समेटे थी,

ऑंखें मेरी कुछ भीगी थीं,

तुमने आने में देर करी

आँखों का पानी बह सा गया,

दुनिया की रीत बदलनी थी,

किताबें नई कुछ लिखनी थीं,

तुमने आने में देर करी,

किताबों का किस्सा भूल गया,

जब वक़्त के आगे बढ़ना था,

संग साथ हमारे चलना था,

तुमने आने में देर करी,

तो पाँव का छाला फूट गया,

जिस नगरी में हम रहते थे

वो पास तुम्हारे थी बेहद,

तुमने आने में देर करी,

और फासला फिर बढ़ता गया,

~इमरान~

शुक्रवार, 27 फ़रवरी 2015

एक शायर

एक शायर.....

कितना तनहा होता है,

बावजूद अलफ़ाज़ के हुजूम के,

बावजूद कहकशां औ गुलशन के,

मौजूदगी होती है,

बहारों की उसके गिर्द,

खिलते फूलों की खुशबु

किया करती है तवाफ़,

कभी महबूब की डोली

तो कभी आशिक़ की सेज़,

कभी रातों के किस्से

तो कभी दिन के अफ़साने,

उसको घेरे रहते हैं

अज़ बला के दीवाने,

बावजूद इस भीड़ के

दिल से शायर के

गर सोच सको तो,

कैसे जीता है वो

लफ़्ज़ों के सहारे जीवन,

चन्द शब्दों के या

किन्हीं किस्सों के सहारे जीवन,

एक शायर का दर्द

समझा न किसी ने क्योंकर,

दर्द आँखों में उतार आया है

यही आज नज़्म बनकर....

बुधवार, 25 फ़रवरी 2015

वो लफ्ज़.....


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वो लफ्ज़ जो कभी,

दिल से सुने जाते थे,

वो बातें जो कभी,

ज़हनों में की जाती थीं,

जहाँ तक किसी भी,

मसीहा की,

रसाई ना थी,

तय रास्ते वो भी,

साथ किये जाते थे,

जिधर से पलटने वाले,

सभी आंसू लिए पलटे,

ख़ुशी की तलाश में,

उस जां हम बढ़े जाते थे,

अब....अब न जाने,

क्या बदलाव आया है,

सफ़र ज़िन्दगी का,

किस रुख पे,

हमें लाया है,

लफ्ज़ समझने वाले,

जो लोग मिले थे हमको,

अब वही लोग क्यों,

खामोश नज़र आते है,

दूरियां लगे खुद वो बढ़ाने

जिसकी तन्हाई में,

बस हम ही हम आते हैं,

कोई तूफ़ान था वो,

या कोई सख्त सैलाब,

सबसे पुख्ता जो,

सहारे थे छुटे जाते हैं,

एक क़दम बढ़ता है,

दो पीछे वो हटाता है,

कौन से ख्वाब हैं जो,

उसको यूँ डराते हैं,

लग्ज़िशें बेसबब हैं,

या कोई रम्ज़ है उनमें,

साये माज़ी से,

निकलते हैं चले जाते हैं,

अपने सरमाये बस,

लफ्ज़ थे जो चन्द अपने,

लफ्ज़ वो ही क्यों,

दुबारा ना पढ़े जाते हैं,

अजनबी तब न लगे,

जब वो मिले थे हमसे,

क्यों वही आज,

मेरे गैर हुए जाते हैं,

मंगलवार, 24 फ़रवरी 2015

अमृता प्रीतम के नाम

अमृता प्रीतम के नाम.....

हर एक बोलती,

नज़्म में उसकी,

एक नया ही,

किस्सा हुआ करता थ,

हर एक बात में,

उसकी बातों की,

एक नया रम्ज़,

बसा करता था,

रम्ज़ जिसमें थी,

जन्मों की कहानी मौजूद,

कोई नई सी तो,

कोई थी पुरानी मौजूद,

वो एक अलफ़ाज़ का,

पैकर थी कोई रौशन सा,

नई नज़्मों का वो एक,

चश्मा थी कोई उजला सा,

उसकी आँखों में सदा,

इश्क़ रहा करता था,

कहीं साहिर तो कहीं,

इमरोज़ बसा करता था,

वो वफ़ा की हुआ करती,

थी गज़ब की पाबंद,

जिसने ठुकराया उसे भी,

नहीं छोड़ा उसने,

नाम बेमतलब ही सही,

नाम तो था लेकिन,

लफ्ज़ ए प्रीतम को,

हमेशा ही था ढोया उसने,

इमरोज़ के कनवास तो,

कभी साहिर के अल्फ़ाज़, 

वो चला करती थी कभी,

गुफ्तगू ए गुलज़ार के साथ,

अब मेरे लफ्ज़ में,

आई है वो हवा बनकर,

अमृता दिल में उतर आई है,

इक दुआ बनकर.....

~इमरान~


मंगलवार, 10 फ़रवरी 2015

आज यार मेहरबाँ था

आज यार कुछ मेहरबाँ था,

उसने मुझको बुला लिया साकी,

बाद मिलने के उसके सहरा में,

हमने इक जश्न मनाया साकी,

तेरे पैमाने को रहने ही दिया,

उसने होंठो से पिलाया साकी,

आज यार कुछ मेहरबाँ था,

हमने ख्वाबों को सजाया साकी,

उसके दीदार की तलब थी मुझे,

उसने सागर जो छलकाया साकी,

आज यार कुछ मेहरबाँ था,

सीधे दिल में उतर गया साकी,

मैंने रोका भी नहीं उसको ज़रा,

जो भी करना था कर गया साकी,

आज यार कुछ मेहरबाँ था,

मेरी साँसों को छू गया साकी,

मैंने दिल से उसे सलाम किया,

ज़िन्दगी का हुआ दौराँ साकी,

आज यार कुछ मेहरबाँ था,

उसने मुझको बुला लिया साकी....

~इमरान~