चीनी मिटटी के कप से,
हलक में उतरती चाय,
कलेजे को जलाती हुई,
ज़ेहन में छोड़ जाती है,
अपने स्वाद की छाप,
सुबह की ताज़ादमी,
नए रोज़ की उमंग,
और फिर हर घूँट के संग,
तैरती जाती हैं ज़ेहन में,
रात की तल्ख़ यादें भी,
यादें जिन्हें बड़ी मुश्किल से,
वक़्त के हवाले कर,
मैं किसी तरह सोया था,
वो फिर घेर लिया करती हैं
फिर सारा दिन वो,
मेरे गिर्द का तवाफ़ करती,
मुझे टीसती रहती हैं,
रात को दोबारा,
फिर से एक बार ,
वक़्त के दामन में,
मेरे हाथो से
गुम हो जाने के लिए,
ताकि सुबह के उजाले के साथ
फिर वापस आ सकें,
ये यादें भी न,
कितनी वफादार होती हैं.....
~इमरान~