गुरुवार, 29 जनवरी 2015

वफादार यादें

चीनी मिटटी के कप से,

हलक में उतरती चाय,

कलेजे को जलाती हुई,

ज़ेहन में छोड़ जाती है,

अपने स्वाद की छाप,

सुबह की ताज़ादमी,

नए रोज़ की उमंग,

और फिर हर घूँट के संग,

तैरती जाती हैं ज़ेहन में,

रात की तल्ख़ यादें भी,

यादें जिन्हें बड़ी मुश्किल से,

वक़्त के हवाले कर,

मैं किसी तरह सोया था,

वो फिर घेर लिया करती हैं

फिर सारा दिन वो,

मेरे गिर्द का तवाफ़ करती,

मुझे टीसती रहती हैं,

रात को दोबारा,

फिर से एक बार ,

वक़्त के दामन में,

मेरे हाथो से

गुम हो जाने के लिए,

ताकि सुबह के उजाले के साथ

फिर वापस आ सकें,

ये यादें भी न,

कितनी वफादार होती हैं.....

~इमरान~

मंगलवार, 27 जनवरी 2015

पहला हक़ मज़दूर का होगा

दिल की गहराईयों में कहीं,
गहरी सी बैठी उदासी,
उदासी को समझाता ज़ेहन,
और ज़ेहन से लड़ता दिल,
एक जीत की कशमकश में,
निरंतर नया सृजन करते हुए,
जन्म देते हैं इंकलाबों को,
कागजों पर नीली स्याही से,
और ज़मीन पर लाल रौशनाई बहाते,
तैयार करते हैं कल की इबारत,
कल जिसकी नींव रखी होगी,
इन्साफ के साफ़ धरातल पर,
जहाँ भट्ठियों में इंसान नहीं,
बस पूँजी झोंकी जाएगी,
कारखानों से निकलते गट्ठरों पर,
पहला हक मजदूर का होगा
और आखिरी हक भी
मजदूर का ही होगा...
~इमरान~

रविवार, 25 जनवरी 2015

वरक़ दर वरक़....

कोई बेहद हसीं सी,
वरक़ दर वरक़,
पढ़ी जाने वाली,
इब्तिदा ए इश्क़ के जैसी,
इंतहा ए उल्फत सी नुमायाँ,
रौशन इबारत सी उजली,
तेरी आँखों से उतर,
मेरे सीने में तैरती,
फिर हमारी साँसों में,
तेरे होंठो के कनारों से,
दरमियाँ हमारे लबों तक,
वरक़ दर वरक़,
कही जाने लगी,
कोई कहानी बेहद हसीं,
अपनी सी लगती,
फिर लिखी जाने लगी....
~इमरान~