शब्बीर हसन खां उर्फ़ जोश मलिहाबादी लखनऊ से कुछ दूरी पर स्थित मलिहाबाद नामी जगह पैदा हुए थे,जोश अपने समय के एक बेहतरीन शायर और सामाजिक विचारक थे,
एक बार जोश ने कर्बला के शहीदों के ऊपर एक मर्सिया लिखा,इस मर्सिये को अवाम में काफी मकबूलियत हासिल हुई,लेकिन जोश ने अपने इस कलाम में मौलवियों और कुछ धर्म के व्यापारियों पर तीखे कटाक्ष भी कसे थे,जिससे धूर्त मौलवियों का एक वर्ग उनसे काफी नाराज़ हो गया और उनका तगड़ा विरोध करना शुरू कर दिया,इसके कारण जोश को एक दो जगह वो मर्सिया पढ़ने से रोका गया,यहाँ तक की कुछ लोगों ने तो उन्हें अपने घरों में बुलाना तक तर्क कर दिया,जोश इससे ज़रा भी विचलित नहीं हुए और अपने कलाम पर अडिग रहे,
एक बार की बात है लखनऊ के एक नामी घराने में साहिब ए खाना ने जोश को वही मर्सिया पढने के लिए आमंत्रित किया,जब ये खबर विरोधी तबके मिली तो उन्हें मिर्चें लग गयीं लेकिन वो कर कुछ न सके,इसी तरह मामला चलता रहा की एक दिन बिल आखिर विरोधी तबके के लोगों में से एक गिरोह जोश की शिकायत लेकर तत्कालीन सर्वोच्च शिया धर्मगुरु अयातुल्लाह नासिर हुसैन अबाक़ती की खिदमत में हाज़िर हुआ और जोश के खिलाफ मौलाना साहब के कान जितने भरे जा सकते थे भरे गए,
जब खूब नमक मिर्च लगा कर ये गिरोह जोश की शिकायत कर चुका तो मौलाना ने अपने एक खादिम को बुलाया और उससे कहा की जाकर जोश से कहो अपना वो मर्सिया लेकर फ़ौरन मेरे पास आयें,
खादिम जब ये खबर लेकर जोश के पास पंहुचा तो वो नहा धो कर अपने घर से बाहर कहीं निकल रहे थे,खादिम ने कहा की जल्द अपना वो मर्सिया लेकर चलिए आपको जनाब ने फ़ौरन याद किया है ,जोश घबराये और अन्दर से जाकर अपने मर्सिये के कागज़ लिए और खादिम के साथ चल पड़े,
वहां जाकर जब उन लोगों को मौजूद देखा तो जोश को सारा मामला समझते देर नही लगी, मौलाना साहब ने जोश को बैठने को कहा,इतनी देर में खादिम चाय नाश्ता वगैरह ले आया था,जब सब फारिग हो चुके तो मौलाना ने कहा,-
"मैंने सुना है की तुम्हारा वो मर्सिया अवाम में बड़ा मकबूलियत हासिल कर रहा है"
जोश खामोश रहे,
मौलाना ने आगे अपनी नमाज़ की चौकी की तरफ इशारा करके कहा-
"जाओ उस चौकी पर जा के बैठ जाओ और इमाम का वो मर्सिया कह सुनाओ"
जोश पहले तो हिचकिचाए लेकिन फिर मौलाना के इसरार पर जा के बैठ गए और मर्सिया सुनाने लगे,
उधर शिकायती तबके का मुंह उतर गया
लेकिन मौलाना थे कि पूरे वक़्त नम आँखे लिए गौर से मर्सिया सुनते रहे...
जब मर्सिया ख़त्म हुआ तो मौलाना ने जोश को अपने पास बुलाकर उनकी खूब तारीफ की और पीठ थपथपा कर उन्हें विदा कर दिया,
जोश के जाने के बाद मौलाना ने उन शिकायती लोगों की तरफ रुख किया,उनमे से एक आदमी ने उठ कर मौलाना से कहा,
-" "सरकार,वो (जोश) तो शराब भी पीते हैं,एक शराबी को आपने अपनी चौकी पर बैठा दिया?"
मौलाना ज़रा असहज हुए,फिर बुलंद अवाज में कुरान की वो आयत पढ़ी जिसका अनुवाद होता है -,
"हरगिज़ इबादत के करीब न जाना जबकि तुम नशे की हालत में हो"
इस आयत को पढने के बाद मौलाना ने समझाया -
"देखो भाई उसने मर्सिया तो बहुत उम्दा कहा है,और इबादत के करीब जाने से तो तब मना किया गया है जब इंसान नशे में हो,बेशक शराब एक बुरी आदत है लेकिन इसका मतलब ये थोड़ी हुआ की शराब पीने या कोई भी गलत काम करने वाले से उसकी इबादत और मज़हबी कामों को अंजाम देने का हक उससे छीन लिया जाये,कुरान में कहीं भी यह तो नही लिखा की शराबी या गुनाहगार को कभी इबादत ही न करने दी जाये!"
जोश के मर्सिये की तारीफ और यह बात सुनने के बाद शिकायती गिरोह कायल होकर खिसियानी हंसी हँसता हुआ मौलाना की दस्तबोसी कर के रुखसत हो लिया..